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________________ राजस्थानी चरित काव्य-परम्परा और आ० तुलसीकृत चरित काव्य ४९ वि.सं. २०२३ में बीदासर में इसमें परिवर्धन-संशोधन किया गया और आदर्श साहित्य संघ द्वारा इसका प्रकाशन हुआ। कृति की विषय-वस्तु २१ गीतों में विभाजित है। माणकगणी तेरापंथ धर्मसंघ में सबसे कम समय केवल साढ़े चार वर्ष तक आचार्य पद पर आसीन रहे। इतने कम समय का आचार्यकाल होने के कारण माणकगणी का जीवन चरित घटना प्रधान नहीं बन पाया, फिर भी तेरापंथ की ख्यात, मंत्री मुनि मगनलालजी के संस्मरण, सोहनलाल सेठिया द्वारा लिखित "शासन सुषमा" तथा सरदारशहर निवासी गणेशदासजी गधया की ऐतिहासिक सूचनाओं के आधार पर "माणक महिमा" का कथानक निर्धारित किया गया है । कृति का प्रारंभ मंगल वचन से हुआ है। तत्पश्चात् जयपुर नगर का ऐतिहासिक संदर्भो में विश्लेषण, माणकगणी का पारिवारिक परिचय, वैराग्य, कष्टमय साधु जीवन की चर्चा, दीक्षा, जयाचार्य का स्वर्गवास, मघवागणी का आचार्य पदारोहण, माणकगणी को युवाचार्य पद, मघवागणी का निधन, माणकगणी को आचार्यत्व, हरियाणा यात्रा, साधु-साध्वियों का वर्णन माणकगणी की अस्वस्थता, स्वर्गारोहण तथा बाढ़ की परिस्थितियों को कथा वस्तु का माध्यम बनाया गया है। ___कृतिकार ने इस चरितकाव्य के नायक माणकगणी के चरित्र का ऐसा हृदयग्राही एवं मर्मस्पर्शी वर्णन किया है, जिससे लगता है कि कवि कृति के नायक का समकालीन हो, लेकिन ऐसा नहीं है। अनदेखे परिवेश का ऐसा सजीव एवं जीवंत चित्रण आचार्य श्री तुलसी की संवेदनशीलता का परिचायक है। (३) डालिम चरित्र - इस चरितकाव्य के नायक तेरापंथ संघ के सातवें आचार्य डालमगणी हैं। इसका रचनाकाल वि.सं. २०१३ से २०१८ है। वि.सं. २०१३ में सरदारशहर में इसकी रचना आरंभ की गई किन्तु उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल की लम्बी यात्रा द्वि-शताब्दी महोत्सव, आगम गवेषणा आदि व्यस्त कार्यों के कारण इसे बीदासर चातुर्मास काल में श्रावणी पूर्णिमा वि.सं. २०१८ में पूर्ण किया। इसके पश्चात वि सं. २०३२ में जयपुर में इसका पुनरावलोकन कर आदर्श साहित्य संघ द्वारा प्रथम प्रकाशन किया गया। इस कृति के चरित नायक का जीवन अनेक उतार-चढ़ावों से युक्त रहा है। उसकी झलक इस कृति में प्रत्यक्ष होकर उभरी है। मूल कथानक दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में बीस गीत और द्वितीय में २१ गीत हैं । इस प्रकार इसकी कथावस्तु कुल ४१ गीतों में आबद्ध है । प्रथम खण्ड की कथावस्तु मंगल वचन से आरंभ होती है । इसके बाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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