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________________ ४८ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान मोमासर जिला चूरू में आरंभ किया और वि.सं. २००० की भाद्रपद शुक्ला षष्ठी रविवार को संध्या समय गंगाशहर (बीकानेर) में पूर्ण किया। इस प्रकार इसका निर्माण लगभग चार वर्षों में जाकर पूर्ण हुआ। सम्पूर्ण काव्य छः उल्लासों में विभक्त हैं । प्रत्येक उल्लास में छः कलाएं तथा प्रत्येक कला में सोलह-सोलह गीत हैं । उल्लास की समाप्ति पर पाँच शिखा के रूप में स्वीकृत किया गया है। कुल मिला कर इसमें १०१ गीत हैं। इन गीतों के अतिरिक्त अन्य अनेक छन्दों में कथावस्तु प्रस्तुत की गई है। प्रत्येक उल्लास के अन्त में पुष्पिका रूप उपसंहृति संस्कृत भाषा में निबद्ध है। कथानक का प्रारंभ कालूगणी की स्तुति से होता है। इसके पश्चात् भौगोलिक परिवेश, पारिवारिक परिचय, जन्म, माता-पिता, सत्संग, वैराग्य दीक्षा, पंचमाचार्य मघवागणी का शिष्यत्व, माणकगणी, डालमगणी का सान्निध्य, डालमगणी के काल में प्रच्छन्न युवाचार्य, कालुगणी का स्वर्गारोहण, कालगणी के बहुआयामी नेतृत्व आदि के विवरण के साथ प्रथम उल्लास समाप्त होता है । द्वितीय उल्लास में जर्मन विद्वान हर्मन याकोबी का आगमन, नाबालिग दीक्षा प्रतिरोध, कांठा, मेवाड़, हरियाणा आदि प्रदेश की यात्रा, तृतीय उल्लास में बीकानेर चातुर्मास में विरोध, जयपुर चातुर्मास, आचार्य तुलसी की दीक्षा, थली प्रदेश में संघर्ष, चूरू चर्चा, ऋतु वर्णन चतुर्थ उल्लास में आचार्य तुलसी की पौशाल, मरूधर विहार, जोधपुर चातुर्मास, कालूगणी के साथ आचार्य तुलसी का संवाद, जंगल का वर्णन, उदयपुर चातुमसि, पंचम उल्लास में दीक्षा प्रसंग में उत्पन्न भ्रांत धारणाएं, मेवाड़ से मालवा की ओर प्रस्थान, मालवा में विरोधी वातावरण, बड़नगर मर्यादा महोत्सव, हाथ की तर्जनी अंगुली में वेदना और षष्ठ उल्लास में गंगापुर चातुर्मास, अंगुली की वेदना और विभिन्न उपचार, साध्वी प्रमुखाश्री कानकुमारी का स्वर्गवास, तुलसीगणी को युवाचार्य पद, कालगणी का स्वर्गारोहण, आदि घटना क्रमों के साथ कथानक समाप्त होता है। अंत की पांच शिखाओं में कालगणी की जीवन-झांकी संघ के बहुमुखी विकास की चर्चा, संस्मरण और कवि का गुरु के प्रति समर्पण भाव आदि का काव्यमय उल्लेख है । कालूयशोविलास अपने आप में एक सम्पूर्ण प्रबन्ध काव्य है । इसमें प्रबन्ध काव्य, महाकाव्य और चरितकाव्य तीनों की विशेषताएं एक साथ उपलब्ध होती हैं। (२) माणक महिमा यह चरितकाव्य तेरापंथ धर्म संघ के छठे आचार्य माणकगणी के जीवन चरित्र से सम्बन्धित है। इसका रचनाकाल वि.सं. २०१३ है। रचना स्थल सरदारशहर है। इसकी प्रथम प्रति मुनि मधुकर ने तैयार की तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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