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________________ ३८ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान मुनि आमेट जी की कृति 'तथर कथ' में अगम की ओलखाण ९९ धीरज रो बाँझ १०२ अगाध सत री सोध ६१ नरक भोगतो बुढ़ापो४ अजाणी लालस्या ४८ पराथनां रा फूल ४७ अन्ध असता री अमावस ९१ परालबध र कांटा ६९ अन्धारै री आदू आंख्यां ९६ प्राणा री नदी नै जोवण रो पाणी ८४ अमर बिसवास ११ पिराणा री बागबाड़ी ४७ आकल बाकल आंसू २१ पेट री पूरति १०७ आंख्यां अछूती कलपना ७८ पोरख रै उगतै उजालै ने ६० आछी भूण्डी ओखध ६५ बिना विसेसण रो आदमी ३६ आपणूं आपणूं राम ५२ बिसवास र सूरज ५३ आपरो आपो १०२ बीजरी आसगति १० उजास रो दरपण १३१ बीजरी चेतणा १३० काम लुबध दीठ २५ बेबस मजबू- ६२ खुद'र अहम रा बिच्छू ८५ मन रो अपरमाद १२ गीत री कालजो छूती गूंज ९३ माटी री काया कोटड़ी ९६ चिंता मोमाखी रो तीखो डंक ७० मैकता अण भै रा फूल ६९ जीवण री रसायण ६७ सरधा री चिणगारी ११३ जोबण रा सपण! ८८ सासवत रो सैनाण ६३ आचार्य तुलसी के काव्य में प्रयुक्त कुछ वाक्यांश.--.. 'प्रभुता की पराजय' में आध्यात्मिक ओज । क्षण की कीमत आँको। क्षीण आवरणी। क्षीण कषाय । गुनह खमाऊं। छोड्यो थारो म्हारो । तरी अगर अभिमान तरी, तो दुख-दुविधावां दूर टरी । मान-मादकता । संयम-सरिता। 'कुम्हारी री करामात' में-- अतिशयधारी । उपरा उपरी उलट्या ग्राम । उग्रविहारी । कालज री कोर । ग्रन्थिभेद कर । दारा सुख की कारा । धर्म-जागरणा। पौद्गलिक सुख-दुःख । मोह मिटा कर । 'सपनै रै संसार' में-लौ वाणियो। 'रूप रो गरब' में----शठे शाठ्य पथ । 'मूलस्यूं ब्याज प्यारो' में- अन्तर ज्योत उज्यारी । स्वयं समाहित भाषा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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