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________________ १७४ तेरापथ का राजस्थानी को अवदान तरणाट उठे सुन बैन कटु ___ गरणाट चढे सिर की नलियां सरणाट बहै रस रोस लइ वरणाट फिरै गलियां गलियां। अभिमान भ्रमान कमान बढ़ा छलबान चढ़ा हसना रलियां सत सील दया द्रुम बींध लिए मुरझी तप संयम की कलियां । आचार्यश्री के युग में अनेक संतों और साध्वियों ने रचनाधर्मिता के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का उपयोग किया है और कर रहे हैं। उनके नामों की एक लम्बी सूची है, लेकिन मैं यहाँ पर केवल कुछ ही कवियों का परिचय प्रस्तुत कर रही हूँ। ___ युवाचार्य महाप्रज्ञजी ने राजस्थानी में यद्यपि कम लिखा है किन्तु जो लिखा है वह उनके स्वतन्त्र दिमाग से उपजा है । देखिए एक नमूना दिल तो है पण दर्द कोनी दर्द कोनी जद ही दिल है नहीं तो आज ताई रहतो ही कोनी कदैई टूट ज्यातो। मुनिश्री गणेशमलजी, जंवरीमलजी, मुनिश्री दुलीचन्दजी, मुनिश्री छत्रमलजी ने राजस्थानी भाषा में काफी रचनाएं लिखी हैं । मुनिश्री बुद्धमलजी राजस्थानी भाषा के एक समर्थ कवि हैं। उनकी 'उणियारो' पुस्तक में संगृहीत कविताओं की समीक्षा में डा० मूलचंदजी सेठिया के शब्द कवि के बारे में पर्याप्त परिचय दे रहे हैं— रै मांय एक मंजेड़ी कलम रो कमाल है, चिन्तन री गैराई है अर भावा रो इस्यो कसाव है जिरसो वां गिण्यां चुण्यां काव्यां में ही मिलै । उदाहरण के रूप मेंबारे हंसणो भीतर रोणी अ दोनू चाल झूठ अणूता घोचा नितरा साचै घर थाल बारै स्यू साचो भीतर में झूठो वण ज्यावै की ने मानां की नै छोड़ा ? ओ संसो आवै ।। कवि की दाध विधा में लिखित मिणकला और पगथिया रचनाएं अनुभूति की प्रवणता लिए हुए हैं। देखिए कांटा ने मत कोस तू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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