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________________ तेरापंथ के प्रमुख राजस्थानी कवि १७३ कवि कल्पना का कैसा मौलिक चमत्कार है । आचार्यश्री ने केवल जीवन चरित्रों को ही अपनी लेखनी का विषय नहीं बनाया है अपितु ऐसे हजारों स्वतन्त्र गीतों की रचना भी की है और ऐतिहासिक आख्यानों को राग-रागनियों में बाँधा है जो अंधियारे गलियारे में भटकते मानव के लिए प्रकाश दीप है । ऐतिहासिक आख्यानों में शाश्वत सत्यों को जिस कुशलता से प्रतिबिम्बित किया है उससे लेखनी स्वयं धन्य हो उठी है मानव तू है राही, सरिता रो सलिल प्रवाही | पण सुख दुःख रो तू कर्त्ता अपण आप गवाही ॥ आचार्य मम्मट के शब्दों में- कवि की दृष्टि अनन्य परतन्त्रा होती है | आचार्य भिक्ष, जयाचार्य और आचार्य तुलसी तीनों ही महान् कवि इस दृष्टि सम्पन्न हैं । तेरापन्थ धर्म संघ के आचार्य ही नहीं मुनिजन भी काव्य निर्माण के मैदान में उतरे हैं । इस श्रृंखला का पहला नाम है मुनिश्री बेणीरामजी, जिन्होंने भिक्षु, जीवन चरित लिखा है जो अपनी सजीव वर्णन शैली के कारण मूल्यवान् कृति बन पड़ी है। मुनिश्री हेमराजजी ने भी भिक्खु चरित लिखा है । मुनि जीवोजी, जो द्वितीय आचार्य भारमलजी के शासन काल में हुए, उन्होंने १० हजार पद्य प्रमाण साहित्य की सर्जना कर राजस्थानी भाषा के भंडार को समृद्ध बनाया है। उन्होंने साधु-साध्वियों के गुणोत्कीर्तन सम्बन्धी गीतिकाओं की रचना तो की ही है साथ ही शासनविलास, भिक्खु दृष्टांत को जोड़ और ग्यारह आगमों पर जोड़ें की 1 मुनिश्री कालूजी ( आराय ) यद्यपि एक कथाकार संत थे, किन्तु 'तेजसार का व्याख्यान, पखवाड़ा, विमल- विवेक आदि रचनाओं के द्वारा काव्य साहित्य को भी वृद्धिंगत किया है । कालगणी के युग में दीक्षित मुनिश्री चांदमलजी के डिंगल - पिंगल तथा चित्रबद्ध छंद पाठक के हृदय को आकृष्ट किए बिना नहीं रहते । मुनि श्री नथमलजी ने स्तुतियों और व्याख्यानों के माध्यम से राजस्थानी भाषा की सेवा की है । मुनिश्री सोहनलालजी ने प्रभूत काव्य साहित्य रचा है । कवित्त, सवैया, घनाक्षरी आदि के प्रयोग में ये विशेष दक्ष थे । इनके काव्यों में श्रद्धा और समर्पण की पराकाष्ठा का तो निदर्शन मिलता ही है साथ ही युगीन विषमताओं का भी मार्मिक वर्णन किया है । 1 जन जीवन में व्याप्त तनाव के बारे में कवि हृदय कह उठता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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