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________________ १५८ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान घणी अच्छी बात हुई है। दु.ख री कोई बात है तो आ है के तेरापन्थ रै राजस्थानी-साहित्य रो उजास कोनी हुयो । आज सूपांच वर्ष पैली जद एक तेरापन्थी युवक सम्वत् २०३० तक छपियोडै आधुनिक राजस्थानी-साहित्य रो अध्ययन करण सारू ग्रन्थ भेला करया तो उणनै १४९ ग्रन्थां मांय फकत एक ग्रन्थ मिलियो-अणुव्रत समिति जयपुर सू प्रकाशित 'जम्बू स्वामी री लूर ।' तेरापन्थ रो राजस्थानी साहित्य पैलीपल कद छपणो शुरू हुवो-- कैणी मुश्किल है पिंण मुम्बई री एक फर्म- "खेतसी जीवराज" कानी सु राजभक्त प्रिंटिंग प्रेस, मुम्बई में छपियोडी एक पोथी म्हारै देखणे मं आई है जिकी उणरी इबारत मुजिब संवत् १९४१ री छपी होवणी चाहजै । उण पोथी रो ऊपरी पानो इण भांत है ___"श्री भीखुजे जसायण चार खंड त्रेसठ ढाला दुहा छपया छंद सहित पाना १३६ सुधी सम्पूर्ण । पछी १३७ थी ठेठ सुधी भ्रष्टांत श्रधा आचारनी उलंषना वगेरे श्री भीषणजी स्वामी ऋत तथा श्री जीतमलजी स्वामी ऋत ३०६ बोलहुंडी वगरे श्रावक सोवजी ऋत हेमराज नीमाणी तथा लुणा कोठारी क्रत । पोथी अपूर्व ग्यान जेमा श्रधा आचार चर्चा प्रश्न उत्तर श्री जिन भाग्नानी वधी थसे पोथी प्रथम थी सम्पूर्ण वाचे जीव सुध श्रधापामे घणा सुलभ बुधि थासे मदत दई पोथी देस परदेस प्रसिद्ध हुवा थी हमारे समकिती भाई ने घणी बधी थसे।" उण पछै दूनी पोथी पिंण शा० खेतसी जीवराज शुद्ध करावी ने मुंबई रै निर्णय सागर-छापखाना मां छापी प्रसिद्ध करी उण पै सं० १९५३ माहा शुद्ध ७ ने भोमे फेबरबारी सने १८९७ लिखी मिलै । इण पोथी रोनाम--- "तेरापन्थी कृत देव गुरू धर्म नी उलखाण नं० बीजो" है । इण मांय "प्रस्तावना' लिखीजी है "मनुष्य जन्म आर्यक्षेत्र उत्तमकुल निरोगी काआ पुरी इद्धी पुरो आवषो सतगुरु संजोग सीधा तनु सांभल सांभलीने श्रद्धवो श्रधी ने तपजप बल प्राक्रम फोर्ववो अत्यन्त दुर्लभ छे ते पामी ने देव गुरु धर्म ए त्रण रत्न अमुल्य छे ते उलंखीने धर्म ते श्री जिनाज्ञामा छे ते निरवद्य करणी नी साधु श्रावक ने आज्ञा आपे पण सावधानी आपे नहीं अने जियां आज्ञा छे त्यां धर्म छे आज्ञानशी त्यां अधर्म छे एवं जाणी देव श्री अरिहंत वार गुणे करी सहित पांच महाविदेह क्षेत्र ने विषे विराजमान छ तेमने देवकरी मानवा गुरु पांच महाव्रतना धारक पांच सुमिते समिता त्रण गुप्ते गुप्तार तेने गुरु करी मानवा भरत क्षेत्र ने विषे श्री माणेकलालजी स्वामी आद देइने तेरापन्थीना साधसाधवी । धर्म केवली भगवंत नो प्ररूप्यो अहिंसा मां धर्म छे व्रत मां धर्म छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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