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तेरापन्थी राजस्थानी साहित्य की रूप-परम्परा
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हिन्दी मांय लिखणो शरू कर दीन्यो । अजमेर रा पं० चन्द्रधर गुलेरी अर पं० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, उदयपुर रा कविराजा श्यामलदास, जोधपुर रा मुन्शी देवीप्रसाद अर उदयचन्द, भरतपुर रा पं० ज्वाला सहाय भर जयपुर रा पं० सदासुख आद ने राजस्थानी री उपेक्षा की ओर हिन्दी अथवा उर्दू माय लिखण शरू कीनो । आर्य समाज रा संस्थापक स्वामी दयानंद अर काशीजी रा भारतेन्दु हरिश्चंद्र अर उणरा साथियां सूं लोक घणा प्रभावित हुया | संस्कृत मांय लिखणिया पिंण इण समै दूजी भासा रूप मं राजस्थानी
अलग कर हिन्दी सूं नातो जोड़ लीन्यो । जयपुर रा पं० मधुसूदन ओझा रा शिष्य मोतीलाल शर्मा इण वेलाहीज अपणा गुरु री पोथ्यां रो हिन्दी अनुवाद शुरू कीनो । जिण सूं हिन्दी राजस्थान मांय सभ्य भासा बणगी अर राजस्थानियां सू उणरी मातृभासा दूर हूगी ।
अकेलो तेरापन्थ ---
तेरापन्थ रा साधु संत इण संकट वेला माय मायड़ भासासूं अलगा कोनी हुया जिणं राजस्थानी री सुरक्षा अर बढ़ोतरी हुयी। खासकर श्री मज्जयाचार्य सं १९०५ सं० १९३६ तलक जिको साहित्य रचियो उणमांय जीवन चरित विधा में खेतसी चरित, हेमनवरसो, भिक्षुजस रसायण, ऋषि रायसुयश, भीम विलास आद सूं ' स्वरूप चोढालियो' तलक अनेक रचनावां लिखीगी । आख्यान विधा मं जयजशकरण रसायण दीपजश रसायण, महिपाल चरित आदि लिखीजी भर इतिहास, उपदेश, स्तुति, अनुवाद, संस्मरण आदि अनेकों विधाओं री रचनावां हुईं। जोड़, चोपी, ढाल, हुंडी, नत्थी, थोकड़ो, देशना, टीप, सिलोका, सिखावण, धवल, बधावो, विवाहलो, सिंध, हियाली, बोल, बखाण, ख्यात, हकीकत, लिखत, मर्यादा, टऊका, ओलोयणा, बाड़, हाजरी, दबावेत, रसाकसा, जसासासा,- -आद घणकरी नू वी - नूवी विधाओं रो विकास हुयो । व्यक्ति विशेष र नाम पै बकचूलियो, रोहिणियो, दामियो, झांझरियो, कठिहारो, थावच्चा, दवदन्ती, उदाईजेड़ा ग्रन्थ पिण लिखिज्या |
सब मिलने बीसवीं सदी विक्रमी र पूर्वार्द्ध मांय जद खड़ी बोली रो जादू आख उत्तरभारत में सिर चढ्यो बोल हो जयाचार्य र नेतृत्व मांय तेरापन्थी साधुसंत राजस्थानी री घणे कोड़चाव सूपं बढ़ोतरी करी अर प्राणपण उणरी देखभाल कीनीं । जयाचार्य वाद पिण राजस्थानी रो तेरापन्थ मांय घणो मान सम्मान रह्यो । अष्टम आचार्य कालूगणि ताई तेरापन्थ रो हर साधु-संत राजस्थानी मांय हीज लिखतो पढ़तो रहियो । नवम आचार्य खुद राजस्थानी रा मोटा साहित्यकार है पिंण देशकाल नै देख परख उणां हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी भासावां न तेरापन्थ साहित्य मं प्रवेश करायो | आ
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