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________________ १५६ कदे नरक निगोद थीनीकलें तिणां पिण दुख पामें घणा ते शब्द अर क्रियापदो रो विकास तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान पामें नर अवतारजी । कहितां नांवे पारजी ॥ स्वामी भीखणजी री कथानक सुदी रचनावां २१ हैं । अ रचनावां पिंण १८३४ सं० १८५० बीच लिखीजी । इण मांय - गूंथीया, पूछिया, आविया नीकल्यो, सन्तोष पांम्यो, वन्दणा कीधी, बिनोंकर बोल्यों, बरजीयो, ओलंभो दीयो, बालजाल भसमकरूं, बींघाया पिण नहीं कान, ते तोनें नहीं जाबक ठीक, जाणों कूड़ारै, आयाथी दोनूं ई छें आच्छारे, लोकां ने दीघा डबोय, उंधी सरघा में न्हाख डबोयारे, करड़ो रोग उपनों, सगली आगुंच दीघी बताय रे, म्हें हाथां काम कमाबीया, मरणो कबूल छे, मारणो मांडयो, कूड कपट बहु केवल्या, अषत्थ पत्थिया, मांहो मांही मिसलत करे, कर्मनीपजे, हो आयो, बिगड्यो दीठो काम, अंग सं अंग भीडी लियो, हिवे किसो करणो अहमेव सुख भोगवे नितमेव, अपथ पथियो तूं खरो, अर दोनूं मांहोमां लड़ मूंई इत्याद भांतरा क्रियापद मिलै । छदमस्थ हुंता, लीधो सरणो, एहवी उद्घोषणा, अनुक्रमें उपजसी, सतकारीयो, भद्रीकछें, प्रतिलाभीया, आराघ्यो, अवतर्या, कोकाट शब्द करता, इत्यादि रै साथै रोवे -भूरे, मांड कही जिसा पद पिंण मिलै । शब्दां मांय हंस = चाह, हर्यक्ष == सिंह, हड़को धड़को = कंपनप्रकंपन, सापादूती - इधर उधर की बातें वेलासर - समय पर, राटां घाटां= उतार चढ़ाव, मेहणो - व्यंग, परठना उचित स्थान पर विसर्जन, अंवलीसंवली - उल्टी सिधी, झांझाभोली - अक्षम साधु वास्तै, आमण दूमणोआकुल व्याकुल, केथ कहां, केड़ = पीछे, कोवी - विद्वान, गडारी गाड़ी का मार्ग, नांगला = पुस्तकों का बस्ता, राणोराण - खचाखच, शेखैकाल = चातुर्मास से अतिरिक्त, मच्छगलागल = निर्बल को सताना, ढाऊंभाऊं - अनभिज्ञ, जामण जायो - मां का सपूत - जीसां नूंवा नूंवा शब्द प्रयोग दीस । इण सूं मालम पड़े के भीखण सांमीरी भासा मांय राजस्थानी री बोलियां रो रल्यो - मिल्यो रूप रहयो होण सके । उण मांय मेवाड़ी, जैसलमेरी, मेरवाड़ी, हाड़ोती, बीकानेरी, जयपुरी, थली- शेखाटी री बोल्यां रा बोल शामिल लागे अर भाषा घणी रोचक, सरल अर हृदयग्राही बण पड़ी दीस, पिंण उणरा मूल ग्रन्थ देख्या बिना भासा रो रूप विकास बतावणी संभव कोनी | = राजस्थानी भाषा रो संकट Jain Education International रूप विकास री दीठ सूं एक बात विशेष लखावै के विक्रम संवत् री २०वीं सदी मांय राजस्थानी भासा पं बहोत बड़ो संकट भयो । उण बेला राजस्थान रा घणकरा विद्वान् राजस्थानी ने छोड़ के खड़ी बोली - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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