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________________ तेरापंथी राजस्थानी साहित्य की रूप-परम्परा १५९ ते विषे आ चोपड़ी मां वरणव करयुं छे जेऊने जोइए ते मंगाबीले जो आग्रन्थ थी श्रधा आचार ऊलखाण थशे ने घणो जाणपणो थसे कोई प्रश्न पुछे ते ने उत्तर देको थसे।" प्रस्तावना मांय दूजी बात भले लिखी है के इण पोथी नै क्यं छपवाई "कोई लखावो तो रु० १५ मां पण लखावाए नहीं। पण छपाणा बोत तेथी शशता पड्या ने ते ऊपर माहारा थी बनी तेवी मेहनत पण घणीकी ने जाण्यु जे आपणा तेरापन्थी मां घणो प्रशीद्ध पण थाय घणा तेरापन्थी श्रावक ने ऊपियोग आवे ते माटे शुद्ध करीने छपावीऊं। बीजी अरज ए छे आपणा तेरापन्थी नो ग्रन्थ काहाडबो होय तो मने समाचार दीधा थी तेनी शलाथसे ने हुं धली तरफ लादणु बीदासर, सुजानगढ़, रतनगढ़, चूरू, सरदारसेर मारवाड़, मेवाड़, माड़वा जेपुर, हरीयाणा क छ काठीवांड़ गुजरात, सूरत वगरे गओहतो तीआना शेठीआ ओए शलादीधी हमोने पका भरोसा है गणामातवर दीपता गणा श्रावको पुजजीतां साधसाधवीना दर्सण करवा आवे ते ने संसार सोभा अर्थे भाव भगती करेछे ते सेठीआओ ना नाम मदद देवा वाला माहे छे जाणवासवै ओलष्यो छे ।" --इण प्रस्तावना सूं साफ-साफ लखावै कै संवत् १९४१ री 'श्री भीखजे जस रसायण' हीजपैली छपियोड़ी पोथी होणी चाहिजै उणपछे नाना दादाजी मुंड व्यापारी, पुणे शक संवत् १८१५ विक्रमी संवत १९५० माय ४१ छापेला पुस्तकों नुं सूचीपत्र जारी कर्यो। उणमांय एक 'भिखुजी सांभी महाराज को चरित्र रास' नाम सूं श्री भीखूजस रसायण अर अलग-अलग जैन धर्म ध्यान प्रदीप, कल्पसूत्र भावार्थ रतन कवर की चौपई, मुनिगुण माला जैन लावणी ... इत्याद ग्रन्था रा नाम है । विक्रम संवत् १९८३ मांय ओसवाल प्रेस, कलकत्ता रा प्रकाश नां मं' "भिक्षुयश रसायण" भल छपियो पिण उणरी मासा बदलगी। संवत् २००० बाद तेरापन्थ द्विशताब्दी सू प्रकाशनांरी झड़ी लागगी । तेरापन्थी महासभा, आदर्श साहित्य संघ, जैन विश्वभारती री प्रकाशन सूचियां मं सैंकड़ो पोथियां लिखी छपी मिलै अर पोथियां री संख्या दिन दूनी रात चौगुणी बढ़ रही है। अन्त मांय म्है हस्तलिखित पोथियां री बात करूं तो बीकानेरजोधपुर रा भण्डारी में दस हजार सूबत्तीं राजस्थानी रा ग्रन्थ म्हारी निज़रा मांय है । उणमं हजार खंड ग्रन्थ तेरापन्थी साहित्य रा होवण सके । अठ जैन विश्व भारती रा भण्डारा मांय घणकरा राजस्थानी ग्रन्थ है जिणमं अप्रकाशित पिंण शामल है उणानै देख्या पढ्या बिना तेरापन्थी राजस्थानी साहित्य री रूप-परम्परा बतावणी सोरी कोनी । म्है केवल उणरी एक रूप रेखा आपण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ww
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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