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________________ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान शूरवीर - कर्म सेना को ध्वस्त करने में सुदर्शन शूरवीर सिद्ध हुए । उनके जीवन में अधिकांश उपसर्ग स्त्रीजाति ने पैदा किया । उपसर्गों से घबराए नहीं अपितु अपने शक्ति तेज से उन्हें परास्त कर दिया । जितने तीव्र बाहरी उपसर्ग थे उतने ही प्रखर उनके आत्मिक संकल्प थे। पहली बार के उपसर्ग के समय उनका संकल्प बल जाग उठा ११६ जो, इण उपसर्ग थी ऊबरूं, व्रत रहे कुसले खेम । तो शील छे म्हारे सर्वथा, जावजीव लगे नेम ।। ६ १६ 50 उनका संकल्प शुद्ध और पवित्र था इसलिए उनका स्वीकृत अभिग्रह पूरा हो जाता 'सूर वीर सुद्ध परिणाम सू, त्यारी कदेय न पलटे बाण । इसी प्रकार दूसरे तीसरे उपसर्ग में भी वे अपराजेय बन गए । ब्रह्मचारी — ब्रह्मचारी और ब्रह्मचर्य की महिमा का बड़ा हृदयग्राही वर्णन जैनागमों में मिलता है । प्रश्नव्याकरण सूत्र में ब्रह्मचर्य को ३२ उपमाओं से उपमित किया गया है। सुदर्शन की जीवन घटना इस बात का प्रमाण है कि ब्रह्मचारी को अपने व्रत में कितना दृढ़ होना चाहिए । यह उदाहरण इस बोध के लिए है कि अनायास शीलखंडन का विकट प्रसंग उपस्थित हो जाय तो भी ब्रह्मचारी मोहग्रस्त होकर विचलित न हो। ऐसे सब प्रसंगों के अवसर पर भी वह असीम मनोबल का परिचय दे और कामराग को पूर्ण रूप से जीते। ऐसे ही प्रसंग पर सुदर्शन का मनोबल प्रकट होता है " मैं चारित्र न जाण्यो नार नो, तिण सूं आय फस्यो छू एह । पण शील न खंडू मांहरों, आ करे अनेक उपाय ।" जो वस छँ म्हारी आत्मा तो न सके कोई चलाय सचमुच 'मन चंगा तो कठौती में गंगा - मन पर काबू हो जाय तो वाणी और कर्म आसानी से वशीभूत हो जाते हैं । सुदर्शन शीलस्खलन के विभिन्न प्रसंगों में ब्रह्मचर्य व्रत के प्रति अडिग देखे गए, ब्रह्मचर्य की स्तुति में अपने को भावित कर आत्मा का उद्धार करते हैं 'शील व्रत हो व्रतां में प्रधान ।"" शीलव्रत की दृढता, ब्रह्मचर्य के प्रभाव से शूली भी उनके लिए आनन्द का सिंहासन बन जाती है । ब्रह्मचर्य की निष्ठा से ही वे बोल पड़ते हैं- 'जो आवे इन्द्र नी अप्सरा तो पिण नही छोडू धर्म नी टेक । २० १९ उत्कृष्ट त्यागी वैरागी - 'त्रिया मदन तलावड़ी, डूबो बहु संसार । केइक उत्तम उबऱ्या सदगुरु वचन संभार ॥ " २१ सुदर्शन उत्तम प्राणी था । धर्मघोष मुनि से धर्मकथा सुनकर उसने संसार के वास्तविक रूप को जानकर निश्चय किया कि जरा और मरण रुपी अग्नि से जलते हुए इस संसार से मैं अपनी आत्मा का उद्धार करूँगा । "अब पांच महाव्रत आदरूं, छांडी परिग्रह तास । बारे भेदे तप तप्पू ज्यू पामू २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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