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________________ ११४ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान अमूर्त । मूर्त नायक मानव हैं, अमूर्त नायक मनोवृति विशेष । मूर्त नायक साधारण मानव कम असाधारण मानव अधिक हैं । यह असाधारणता आरोपित नहीं, अजित है । अपने पुरुषार्थ, शक्ति और साधना के बल पर ही ये साधारण मानव विशिष्ट श्रेणी में पहुँच जाते हैं । ये पात्र सामान्यतः संस्कारवश या किसी निमित्त कारण से विरक्त हो जाते हैं और प्रव्रज्या अंगीकार कर लेते हैं । दीक्षित होने के बाद पूर्वजन्म के कर्म उदित होकर कभी उपसर्ग बनकर, कभी परीषह बनकर सामने आते हैं पर ये अपनी साधना से विचलित नहीं होते । परीक्षा के कठोर आघात इनकी आत्मा को और अधिक मजबूत तथा इनकी साधना को और अधिक तेजस्वी बना देते हैं । प्रतिनायक परास्त होते हैं पर अन्त तक दुष्ट बनकर नहीं रहते । उनके जीवन में भी परिवर्तन आता है । और वे नायक के व्यक्तित्व की प्रेरक किरण का स्पर्श पाकर साधना पथ पर चल पड़ते हैं। भारतीय साहित्य के मूल में आदर्शवादिता है। वह संघर्ष में नहीं मंगल में विश्वास करता है । यहाँ नायक का अन्त दुःखद मृत्यु में नहीं होता । उसे कथा के अन्त में आध्यात्मिक वैभव से सम्पन्न अनन्तबल, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्त सौन्दर्य का धारक बताया गया है । ___ सुदर्शन मुनि जैन परंपरा में महावीर के पांचवें अन्तकृत केवली माने गए हैं। इनकी यह विशेषता है कि वे घोर तपस्स्या कर एवं नाना उपसर्गों को सहन कर उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। णमोकार मंत्र के प्रभाव से गोपाल बालक अगले जन्म में सेठ सुदर्शन के रूप में जन्मा । खूब वैभव मिला और घोर यातनाएं भी सहनी पड़ी। किन्तु वे न तो वैभव और भोगविलास में रमे, न क्लेश और पीड़ाओं में विगलित हुए। उन्होंने आत्मसंयम के उच्चतम आदर्श के फलस्वरूप वीतरागता और सर्वज्ञता पायी। शास्त्रीय काव्यों की परंपरा में नायक को सफल नायकत्व की कसौटी पर कसा गया है । दशरूपककार ने नायक के गुणों का उल्लेख किया है 'नेता विनीतो मधुरस्त्यागी दक्षः प्रियवंदः । रक्तलोकः शुचिर्वाग्मी रूढ़वंश स्थिरो युवा ॥ बुध्युत्साह स्मृति प्रज्ञा कलामान समन्वितः। शूरो दृढश्च तेजस्वी शास्त्रचक्षश्चधामिकः ॥ इस चरितकाव्य का नायक सुदर्शन धीरोदात्त नायक के लक्षणों से युक्त पाया गया है। वह आद्योपांत, अतिगंभीर, क्रोध-शोक-सुख-दुख में प्रकृतिस्थ, क्षमाशील, दृढ़व्रती एवं निरभिमानी पाया गया है । जो उसे धीरोदात्त नायक की कोटि में ला खड़ा करते हैं। चरितक (व्य का नायक मोक्ष पुरुषार्थ को प्राप्त करने का प्रयास करता है, उसकी समस्त भावशक्ति अपने लक्ष्य की ओर प्रवृत्त रहती है। नायक जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में जीता हुआ आदर्शवाद को प्रस्थापित करक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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