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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
अमित प्रेम-धन ऊमड़यो, रोमांचित तनु संघ । जग में जननी जात रो, है अभिहड़ सम्बन्ध ।
उ० १, ढा० १४, गा० १२,१३,१७ आचार्यश्री कालूगणी लाडनूं पधारते हैं। बालक तुलसी (आचार्य तुलसी) आपका मुखारविंद देखते हैं, तो भंवरे की तरह झूम उठते हैं। उस समय का चित्रण "केवडो" इस राग में कितना सार्थक है
"म्हारे गुरुवर रो मुखड़ो है खिलतो फूल गुलाब सो। मुखड़े री छवि मनहार, मुखड़ो शशांक सोम्याकार ।।
मुखड़ो अमंद अविकार "..." मंजु मनोहर मोहन मूर्ति, स्फूर्ती दिव्य दिदार । पूंजीभूत पुण्य मनु पलकै, भलकै ललित लिलाड़ ॥ गुरु-वदनारविंद पर झूमै, मुझ मन-अलि अनुहार । अनिमिष-नयन निहारै सोत्सुक, सम्मुख बारम्बार ॥"
उ० ३, ढा० ३, गा० २२,२४ वि० सं० १९९० सुजानगढ़ में जोधपुर के श्रावकों द्वारा मारवाड़ पधारने के लिए भाव-भरा निवेदन "मरुधरा की पुकार" के रूप में प्रस्तुत हुआ है-"घड़ि दोय आवतां पलक इक आवतां" इस लोकगीत में
"गुरु घड़ि-घड़ि पलक-पलक निज हक लख, खड़ि-खडि बाट निहारै हो अति दुख भारै हो, गणिवर ! विरहवती मरु भूमि का, मोनै "मरु' "मरु" कह बतलावै हो, कइ दिल दावै हो, गणिवर ! कह मरुदेश-मरीचिका । निरजल थल कहि गावै हो मन सुख पावै हो गणिवर ! जदपि वहै जल-वीचिका कइ जंगल' कहि-कहि जावै हो, जी घबरावै हो गणिवर ! नाम निसुण मरुदेश रो।। म्हारो दिलड़ो खूब दुखावै हो, किल बिललावै हो, गणिवर ! करुण दृश्य लख क्लेश रो।"
उ० ४, ढा० १, गा० २२,२३ इसी प्रकार “भांग" की देशी-पिओ नी परदेशी में मेवाड़ी लोगों की प्रार्थना में मेवाड़ का अनूठा चित्रण हुआ है
"पूज्य परमेश ! पधारो देश मेवाडां तारो अजि तारणहार थांरो इक मात्र आधार ।
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