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________________ कालूयशोविलास : विविध संगीतों का संगम • ऊँचा ऊँचा शिखरां स्यूं शिखरी सुहाणां शिखरयां स्यूं हरित अपार । भर-भर करता निर्भरणा, उज्ज्वल वरणां, किरणां दूधां री धार ॥ • बांगां - बांगां बड़भागां, कोयलिया कूजै, गूंज गहूर- बिच शेर । • लम्बी खोगलां नाला बाहला ने खाला, नदियां रो नहीं निवेर ॥ • वारी बिन सींचे, वारी सूकै विचारी, समझो गुरु ! आप विचार | • वारी वारिज इकतारी, थांरी नै म्हांरी, न करो अब देर लिगार ॥ उ० ४, ढा० ९, गा० ९,१०,१३ इसी प्रकार एक भजन - "हरि गुण गायलं रे" की देशी में परमाराध्य कालगणी के हाथ के व्रण का आखों देखा हाल कितना सही रूप में प्रस्तुत हुआ है "भयंकर व्रण स्यूं रे, जकड़यो स्वाम शरीर, 2% अटल निज प्रण स्यूं रे, धीर वीर गंभीर । असर नहीं उपचार रो रे, झाल्यो जिद्द हमीर ॥ भजे वाम कर वामता रे, सझे नहीं उपशम । पीड़ - अर्जणी तर्जणी रे, सघन गर्जणी घाम ॥ छोटे कद में दीखतो रे, जावद में जो रूप । लाज-विहूणो आज तो रे, बण्यो घणो विद्रूप || बांधी ऊपर लूपरी रे, भरी पीप स्यू पूर । कुल कुटिल विष विषमता रे, प्रसरी पीड़ प्रचूर ॥ चबको अति अबखो चलै रे, सबको दिल बेचैन । उच्छृंखल खल आग्रही रे, सुणे न माने ऐन ॥ " उ०५, ढा० १३, गा० १३-१६ दूसरा चित्रण देखिये प्राचीन चौबीसी की देशी - " कुंथु जिनवर रे" "आज म्हारे गुरुवर रो लागे अंग अडोलो । सदा चुस्त सो रहतो चेहरो सब विध ओलो दोलो ॥ कुण जाणी व्रण वेदन बेरण दारुण रूप बणासी, सारे तन में यूं छिन छिन में अपणो रोब जमासी । ओ उणिहारो रे जाबक पड़ग्यो धोलो | १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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