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________________ भिक्खु दृष्टांत - एक अनुशीलन ९९ जानते हो । उन सबको किसने देखा है तब ठाकुर सा बोले- हम तो चारणों और भाटों की बहियों के आधार पर जानते हैं । यह सुनकर स्वामी जी ने कहा--- भाटों और चारणों को झूठ बोलने का त्याग नहीं है । उनकी लिखी बातों को तुम सच मानते हो । तब ज्ञानी पुरुषों द्वारा कही हुई बात असत्य कैसे हो सकती है । यह सुनकर ठाकुर सा बहुत प्रसन्न हुए । २. कहीं नया झगड़ा खड़ा न हो जाए : स्वामीजी के सिरियारी चातुर्मास में पोतियाबन्ध सम्प्रदाय का कपूर जी नाम का साधु था । वहाँ पर कुछ उस सम्प्रदाय की श्राविकाएँ भी थीं । क्षमायाचना दिवस के दिन कपूरजी ने स्वामीजी से कहा- भीखणजी ! श्राविकाओं से मेरी कुछ खटपट हो गयी । आज उनसे क्षमायाचना करने जा रहा हूँ । स्वामी जी ने कहा- कपूर जी जा तो रहे हो, कहीं नया झगड़ा खड़ा मत कर लेना ? कपूर जी ने कहा- -नया झगड़ा क्यों करूंगा । कपूरजी ने वहाँ जाकर कहा - बहिनों तुम ने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया, पर मुझे राग-द्वेष नहीं रखना है । तब बहिनों ने कहा - बुरा व्यवहार हमने किया या तुमने किया । इस पर झगड़ा और बढ़ गया । कपूरजी वापस आकर स्वामी जी से बोले - भीखण जी झगड़ा तो उल्टा और बढ़ गया। तब स्मित हास के साथ स्वामीजी ने कहा- मैंने तुम्हें पहले कहा, वही हुआ । पारदर्शी व्यक्तित्व के महाधनी आचार्य भिक्षु के पास कुछ व्यक्ति उन्हें चर्चा में परास्त करने, कुछ व्यक्ति परीक्षा करने, कुछ दूसरों के द्वारा उकसाए हुए तो कुछ अपनी अस्मिता का प्रदर्शन करने आते थे । ऐसे व्यक्तियों को स्वामीजी अपने सिद्धांत - बल, तर्क - बल और बुद्धि-बल से सन्मार्ग की ओर बढ़ने की प्रेरणा देते थे । और अपनी हंस-मनीषा - प्रज्ञा से उनके विचारों में छाये अंधेरे को उजाला प्रदान करते थे । भिक्खु दृष्टांत में संगृहीत प्रेरणादायी संस्मरणों का निम्नांकित प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है: जैसे एक प्रकार का वर्गीकरण (१) संघीय साधु साध्वियों से सम्बन्धित संस्मरण (२) संघीय श्रावक समाज से सम्बन्धित संस्मरण (३) अन्य सम्प्रदाय के साधु-साध्वियों से सम्बन्धित संस्मरण (४) अन्य सम्प्रदाय के श्रावकों से सम्बन्धित संस्मरण (५) कुछ संस्मरण दान, दया, हिंसा, पुण्य, पाप आदि से सम्बन्धित हैं दूसरे प्रकार का वर्गीकरण (१) तत्त्व दर्शन से सम्बन्धित संस्मरण Jain Education International For Private & Personal Use Only ७५ १७ ७१ १३५ १४ ८० www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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