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________________ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान व्यवहार- कौशल अनूठा था । उनके सामने जो भी व्यक्ति आता, वह स्वामीजी के व्यवहार से अभिभूत हो जाता। क्योंकि स्वामीजी दूर से ही आने वाले व्यक्ति की नब्ज पहचान लेते और उनके मनोभावों को ताड़ लेते थे । कुछ ऐसे ही जीवन-प्रसंग प्रस्तुत हैं, इस सन्दर्भ में. - ९८ १. तुम्हारे लिए नरक ही बचा है : आचार्य भिक्षु देसूरी जा रहे थे। रास्ते में घाणेराव के महाजन मिले । उन्होंने पूछा- तुम्हारा नाम क्या है ? स्वामीजी ने कहा - भीखण । उन्होंने कहा—भीखण ! तेरापन्थी, वह तुम हो ? तब स्वामीजी ने कहा- हाँ, हूँ तो वही । तब वे उत्तेजित होकर बोले- अहो ! अनर्थ हो गया । तुम्हारा मुँह देखने वाला नरक में जाता है । स्वामीजी ने कहा- तुम्हारा मुँह देखने वाला ? उन्होंने गर्व के साथ कहा- हमारा मुँह देखने वाला स्वर्ग या मोक्ष में जाता है | स्वामीजी ने सस्मित हास्य बिखेरते हुए कहा- तुम्हारे विश्वास के आधार पर मुझे तो स्वर्ग या मोक्ष ही मिलेगा । तुम्हारे हिस्से में तो नरक ही बचा है । २. जैसा दिया जाता है वैसा पाया जाता है : 'काफरला' गाँव में साधु गोचरी को गए । एक जाटनी के घर में धोवन था --- - जैसा दिया पानी था । वह देने को तैयार नहीं हुई । उसका विश्वास जाता है वैसा मिलता है । मैं ऐसा पानी नहीं पी सकती इसलिए नहीं दूंगी । सन्तों ने स्वामीजी को सारी अवगति दी । तब स्वामीजी स्वयं वहां पधारे और बहिन से धोनपानी देने को कहा । तब बहिन ने कहा- मुझसे धोवन नहीं पिया जाता । तब स्वामीजी ने कहा- गाय को घास डाली जाती है, फिर भी वह दूध देती है । ऐसे ही साधुओं को धोवन पानी देने से लाभ मिलता है । ऐसा सुनते ही उसने धोवन पानी दे दिया । (घ) विचार दर्शन - पक्षी को अनंत आकाश में उड़ने के लिए पांखों की अपेक्षा रहती है । पांखें जितनी शक्तिशाली होती हैं, पक्षी उतनी ही ऊंची उड़ान भर सकता है । विचारों की पांखें जितनी सबल और स्फुरित होती हैं व्यक्ति उतनी ही विकास की ऊंची उड़ान भर सकता | प्रस्तुत है स्वामीजी के संस्मरणों की एक झलकः --- १. आप कैसे जानते हैं ? केलवा में ठाकुर मोखम सिंह जी ने कहा- आप भविष्य का लेखा जोखा बतलाते हैं । वह किसने देखा है । तब स्वामी जी दादे, परदादे, हुए हैं । तुम उन पीढ़ियों के नाम और Jain Education International For Private & Personal Use Only बोले- तुम्हारे बाप, उनकी पुरानी बातें www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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