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________________ भिक्खु दृष्टांत—एक अनुशीलन आयुर्वेदिक औषधियों का सार अर्क होता है। ऐलोपैथिक औषधियों का सार ए० बी० सी० डी० टेबलेट होती हैं । वैसे ही ज्ञान का सार आचार होता है। "नाणस्स सारो आयारो" स्वामीजी के संस्मरणों में उनके ज्ञान की गहराई के साथ आचरण की ऊंचाई का प्रतिबिम्ब प्राप्त होता है। प्रस्तुत हैं, आचार दर्शन के कुछ संस्मरण:१. तीन नौकाएं : किसी व्यक्ति ने आचार्य भिक्षु से पूछा-शुद्ध साधु कौन होता है ? स्वामीजी ने नौका का उदाहरण दिया। तीन नौकाएं हैं। एक पूर्ण नौका दूसरी छिद्र युक्त नौका। तीसरी पत्थर की नौका। पहली नौका के समान शुद्ध आचार निष्ठ साधु जो स्वयं तरता है और अन्य भव्य प्राणियों को तारता है। दूसरा केवल साधु परिवेश में रहता है। वह स्वयं डूबता है। दूसरों को संसार-सागर में डुबोता है। वह छिद्र युक्त नौका के समान है। तीसरा प्रत्यक्ष ही पाखण्डी जो स्वयं डूबता है तथा दूसरों को भी डुबोता है। वह पत्थर की नौका के समान है। स्वामीजी ने इस प्रकार प्रश्नकर्ता को आचारनिष्ठ साधक की पहचान का पथ प्रशस्त किया। २. रोटी के लिए आचार कैसे छोड़ दू : एक बहिन ने आचार्य भिक्षु से आहार के लिए विनम्र निवेदन किया। स्वामीजी उसके घर पधारे । वह आहार बहराने लगी। स्वामीजी ने कहालगता है तुम्हें आहार देने के बाद हाथ धोने पड़ेंगे । उस बहिन ने कहाहाथ तो धोने ही पड़ेंगे। स्वामीजी ने कहा-सचित जल से धोओगी या गर्म पानी से ? उस बहिन ने कहा-हाथ गर्म पानी से धोऊंगी। स्वामीजी ने पूछा-पानी कहां गिराओगी? बहिन ने कहा-नाली में गिराऊंगी। तब स्वामीजी ने कहा---पानी नीचे गिरेगा, उससे वायुकायिक जीवों की विराधना होगी । बहिन ने कहा-आप इस बात की चिन्ता छोड़ें। हम सांसारिक प्राणी हैं, इसमें आपको क्या आपत्ति है। यह तो हमारा कार्य है। तब स्वामीजी ने कहा- तुम अपना सांसारिक कार्य नहीं छोड़ सकती, तो मैं रोटी के लिए आचार को कैसे छोड़ सकता हूँ। (ग) व्यवहार दर्शन-- दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण माध्यम है-- व्यवहार । व्यवहार से व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान होती है। स्वामीजी का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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