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आधुनिक राजस्थानी कविता को तेरापंथी सन्तों का योगदान
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देश मारवाड़ और चरू में जनम म्हारो, तेरा वर्ष रह्यो मारवाड़ी रमझोली में । बोली मारवाड़ी ही में राखू दिलचस्पी नित्य,
रह्यो मारवाड़ का ही साधुवां की टोली में ।
काव्य की दृष्टि से मुनि सोहन की कविताएं मूलत: भक्ति और विरति की कविताएं है। उनमें एक ओर जीवन के उच्चतर मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा है तो दूसरी ओर अपने आराध्य के प्रति अनन्य आस्था और सर्वात्म-समर्पणभाव की अभिव्यक्ति हुई है। गुरु गुण वर्णन में उनकी विशेष अभिरुचि रही है और इसकी महिमा का वर्णन उन्होंने इन भाव-विभोर शब्दों में किया है
नमन करत सब विधन टरत भव, उदधि तरत दुख परत अलग है। भरम मिटत जिन धरम पटत,
अवगुण सब दुरत करत अघनग है। आपने प्रमुख रूप से तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु, अपने दीक्षा गुरु आचार्य कालू और वर्तमान आचार्य तुलसी के प्रति अनन्य भक्तिभाव की अभिव्यक्ति की है । इनका प्रायः समस्त काव्य प्रकीर्णक है और इन्होंने किसी प्रवन्ध-काव्य की रचना नहीं की। 'जसमा ओडण' नामक एक भाख्यानक काव्य की रचना अवश्य की थी, परन्तु यह अधावधि प्रकाशित नहीं हुआ है। फिर भी, आपने स्फुट रूप से आचार्य भिक्षु के इतने अधिक जीवनप्रसङ्गों को शब्दबद्ध किया है कि अगर उन्हें काल-क्रमानुसार व्यवस्थित रूप से संयोजित किया जाए तो एक जीवनी परक काव्य का प्रबन्ध स्वतः सम्पन्न हो जाएगा। यह सही है कि मुनि सोहन एक सम्प्रदाय विशेष के सन्त थे और अपनी गुरु-परम्परा के प्रति उनका पूर्ण समर्पण भाव रहा था, परन्तु इसके बावजूद उनका अधिकांश काव्य लोक सामान्य भाव भूमि पर आधारित है। आपने अपने युग-यथार्थ का चित्रण करते हुए उसकी विसंगतियों और विषमताओं को पूरे तौर पर उजागर करने का प्रयास किया है--
आज भला को उठ्यो बिस्वास, लफंगां के घी में चमाचम टोटो । हाथ के हाथ भरे बटका, आयो आज जमानो हलाहल खोटो। चोर, छली, बदखोर ठगोरा नै, सोरो मिलै हर काम को कोटो। जो मरग्या तरग्या दुख सिन्धु हा ! , आयो जमानो हलाहल खोटो ।
नव आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन किया तो मुनि सोहन के काव्य को एक नया सामाजिक प्ररिप्रेक्ष्य प्राप्त हो गया। कवि ने 'अणुव्रत-वाटिका' के अनेक छन्दों में इस नैतिक आंदोलन की पुनरुत्थानकारी
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