________________
तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
भूमिका को स्पष्ट करते हुए युगीन समस्याओं के समाधान की ओर संकेत किया है
आज की स्वतंत्रता तो दादी परतंत्रता की,
थोड़ा-सा दिनां में रूप आपनो दिखायो है । खान-पान वस्त्र की भी रही नां व्यवस्था कछु,
स्वारथ की भावना में भारत फंसायो है। देख दुनिया को हाल हाल्यो तुलसी को हृदै,
अणुव्रत-संघ बीज रोप्यो मन भायो है। सोहन भनन्त फल लूटण हुवै तो लूटो,
तुलसी स्वतंत्रता को खरो खेत बाह्यो है। अपने छह दशक के सृजन-काल में मुनि सोहन ने प्रभूत काव्य-रचना की है; मात्रा और गुणवत्ता की उभय दृष्टियों से उनकी रचनाओं में विपुल वैविध्य और विस्तार है। वे शब्द के सिद्ध-साधक थे और भणिति की विभिन्न भंगिमाओं पर उनका असाधारण अधिकार था। उनके अन्तेवासी मुनि छत्रमलजी के शब्दों में "उनका काव्य यथार्थवाद से बहुत संलग्न है, पर यथार्थवाद भी न वहां नग्न हुआ है, न भग्न। उस काव्य में मर्मोक्तियों, व्याजोक्तियों और व्यंग्योक्तियों की भरमार है तो प्रक्रिया की पैनी काटछांट से अनूठा साज-शृंगार और भी निखरा है। इस हिंसा-प्रतिहिंसा से संतप्त और द्वेष-दग्ध संसार को वे यह अन्तिम सन्देश दे गए थे
विश्व की समस्या आज हो रही विचारणीय
आपस के सोये विस्वास को जगाओ रे ! वातावरण हिंसा को मिटाकर अहिंसा द्वारा
'सोहन' इ दुनिया दिवानी नै बचाओ रे ! आचार्य तुलसी के 'बड़भाई' सेवाभावी मुनिश्री चम्पालालजी 'भाईजी महाराज' के नाम से सब के हृदय में समाए हुए थे। परन्तु, जब तक उनके कविता संग्रह आसीस का प्रकाशन नहीं हुआ बहुत कम लोगों को यह पता था कि वे प्रेरणा के क्षणों में शब्द भी जोड़ते हैं। सच तो यह है कि भाईजी महाराज एड़ी से चोटी तक हृदय ही हृदय थे। और ऐसा संवेदनशील व्यक्ति कवि हुए बिना कैसे रह सकता था? उन्होंने अपने जीवन में पुल ही पुल बनाए, कभी खाई नहीं खोदी। वे जीवन भर सुई का कार्य करते रहे, कभी कतरनी नहीं बने। इन पक्तियों में उन्होंने जैसे अपने जीवन का मूल मन्त्र प्रस्तुत कर दिया है
गिरतोड़े नै थाम रे चम्पा ! चेप टूटतोड़े नै । फूंक दूखते फोड़े रे दे, सोंच सूखतोडै नै ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org