SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधुनिक राजस्थानी कविता को तेरापंथी संतों का योगदान - डॉ० मूलचन्द सेठिया राजस्थानी भाषा और तेरापंथ का प्रवर्तन काल से ही घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। आद्याचार्य भिक्षु और चतुर्थाचार्य जीतमलजी दोनों ही राजस्थानी कविता के प्रोज्वल नक्षत्रों में रहे हैं। अर्वाचीन काल में भी, जिसका आरम्भ आचार्य तुलसी के पट्टारोहण से होता है, मुनि सोहनलालजी, मुनि चम्पालालजी, मुनि बुद्धमल्लजी आदि का उल्लेखनीय योगदान रहा है । मुनि सोहनलालजी ने तो कालूगणी के युग में ही अपने वाग्वैभव का परिचय देना आरम्भ कर दिया था, परन्तु उनकी प्रतिभा का प्रखर विकास तुलसी युग में ही हुआ । स्वयं आचार्य तुलसी ने मगन चरित्र में आपका परिचय देते हुए लिखा है : लेखन, वक्ता, कवि गायक, विद्या सेवी, चरचा में चतुर कलाप्रिय, प्रिय वाग्देवी । आपने प्रायः साठ वर्षों तक संयम की आराधना के साथ शब्द की साधना की थी । वे वाणी के वरद पुत्र थे। उन्हें ओजस्वी मुद्रा में काव्य-पाठ करते सुनकर कवि और काव्य की एकात्मता का अनुभव होता था। वे केवल मुख से ही कविता नहीं सुनाते थे, उनके अंग-अंग के इंगित से काव्य के स्वर मुखरित होते थे। उनका रोम-रोम काव्यमय था। राजस्थान और राजस्थानी भाषा के प्रति आपका अनन्य अनुराग था। राजस्थान का गौरव-गान कवि ने इन शब्दों में किया था--- बड़ा-बड़ा मरदां रो माथो राजस्थान रंगीलो है, कर्मवीर और धर्मवीर दोनां नै औ निपजाया है। सांगा और हम्मीर धीर चित्तौड़ भूमि रा जाया है । उन्होंने राजस्थान की जिस पुण्य भूमि पर सूर्य की प्रथम किरण का स्पर्श पाया, उसी पर अपनी जीवन-संध्या का पटाक्षेप होते देखा था। वैसे तो सन्त चिर यायावर होते हैं, परन्तु नियति ने राजस्थान के साथ मुनि सोहन का जो अटूट सम्बन्ध जोड़ दिया था, उसे वे सदैव गर्व और गौरव के साथ स्वीकार करते रहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy