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साहित्यकार नैतिक जागरण के सजग प्रहरी बनें
साहित्य जीवन का एक मधुर और सरल पहलू है । हृदय को जैसी आनन्दानुभूति और तुष्टि साहित्य के अनुशीलन में होती है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है । मेरी दृष्टि में साहित्यकार बहुत बड़ी शक्ति का ज्योतिर्मय पुंज है । युग-युग में 'वह जन-जीवन की धारा को एक अभिनव मोड़ देता रहा है । उसकी कोमलकान्त पदावली में एक सहज आकर्षण होता है, जो तत्वोपदेश में एक विशेष प्रकार की सुकुमारता ला देता है । इसीलिए प्राचीन कवियों साहित्यकार के माध्यम से दिये जाने वाले उपदेश को कान्तासम्मित उपदेश कहा है ।
आज का युग नैतिक दुर्भिक्ष का युग है । जीवन के नैतिक एवं चारित्रिक मूल्य बिखरते जा रहे हैं, नष्ट होते जा रहे हैं । स्वार्थपरायणता एवं लोभवृत्ति ने मानव को इतना निकृष्ट बना दिया है कि नीतिनिष्ठा, सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता, ईमानदारी, सदाचरण जैसे गुण तिरोहित होते जा रहे हैं । ऐसे विषम समय में साहित्यकार और कवि पर लोक-जीवन की धारा को नया मोड़ देने का एक बिना सौंपा हुआ उत्तरदायित्व आ जाता है । इसलिए जन-जीवन को सुसंस्कारसंपन्न और संयमप्रधान बनाने में एक बड़ी भागीदारी आज के साहित्यकार को निभानी है । अणुव्रत आंदोलन पिछले एक दशक से राष्ट्र में आध्यात्मिक जागृति एवं नैतिक उत्थान की एक महत्वाकांक्षी योजना लिए कार्यरत है । मैं चाहता हूं, साहित्यकार बन्धु आत्म-शुद्धि एवं जीवन-शुद्धि के इस मंगल अभियान में अपना समुचित योगदान दें। वे नैतिक जागरण के सजग प्रहरी बनें । यह राष्ट्र और समाज की अत्यन्त उल्लेखनीय सेवा होगी ।
हिन्दी सभा, सीतापुर ४ जून १९५८
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महके अब मानव-मन
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