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ढंग से संपादित नहीं कर सकते। फिर एक बात और भी है। सजा की अवधि समाप्त होने पर आप तो संभवतः कारावास से छूट भी जाएंगे, पर उनका यह जीवनभर का बंदीपन कोन मिटा सकता है। इस बात को दृष्टिगत रखते हुए प्रत्येक बंदी को चाहिए कि वह अपने वर्तमान जीवन को निराशा-हताशा और विलाप में न बिताए। उसे तो ऐसा ही मानना चाहिए कि वह अपना ऋण चुका रहा है। संकल्प-चेतना जगाएं
हम अणुव्रत आंदोलन के रूप में एक व्यापक कार्यक्रम चला रहे हैं। यह कार्यक्रम व्यक्ति-व्यक्ति के सुधार से समाज-सुधार की परिकल्पना लेकर चलता है। इसके माध्यम से एक तरफ जहां राज्याधिकारी, कर्मचारी, मजदूर, व्यापारी, विद्यार्थी, अध्यापक आदि वर्गों के लोगों के चरित्र को ऊंचा उठाने का प्रयास कर रहा है, वहीं दूसरी ओर समाज से पृथग्भूत तथा उपेक्षित कहे जाने वाले वर्ग को भी नैतिक एवं चारित्रिक दृष्टि से उन्नत एवं समृद्ध बनाने के लिय सचेष्ट है। इसी उद्देश्य से आज मैं कारावास में आपके बीच आया हूं । मेरा आह्वान है कि चारित्रिक विशुद्धि के द्वारा जीवन को संवारने के लिए आप अपनी संकल्प-चेतना को जागृत करें। निश्चित ही आपके जीवन का एक शुभ अध्याय शुरू होगा।
सीतापुर ६ जून १९५८
अन्धकार में प्रकाश खोजें
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