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________________ ४३ अपेक्षित है आत्म मंथन यह जीवन एक यात्रा है। इस यात्रा का पथ कभी समतल मैदान से होकर गुजरता है तो कभी चढ़ाव उतारभरी विषम घाटियों से होकर । व्यक्ति के जीवन में कुछ प्रसंग ऐसे आते हैं, जब वह स्वार्थ, लोभ, लालसा तथा प्रतिहिंसा जैसे असद् भावों से आहत हो अपना आत्मसंतुलन खो बैठता है । ऐसी स्थिति में उसे औचित्य - अनौचित्य का भान नहीं रहता । करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं रहता । यह आत्म- दौर्बल्य उसे अपराध की ओर ढकेलता है । इसके परिणामस्वरूप वह कभी हत्या करता है, कभी चोरी करता है, डाका डालता है, कभी धोखाधड़ी और जालसाजी करता है । अब यदि अपराध प्रकट और प्रमाणित हो जाता है तो उसे बंदी बनाकर कारावास में दिया जाता है । मैं मानता हूं, सचमुच बंदीपन एक दुःसह दुःख है, बंदी का जीवन पारतंत्र्य का जीवन है और पारतंत्य से बढ़कर इस जगत् में कोई दुःख नहीं होता, अभिशाप नहीं होता । परन्तु मैं बंदीजनों से कहना चाहता हूं कि वे अपना विवेक जागृत करें और दुःख में भी सुख का स्रोत बहाएं। अंधकार में भी प्रकाश खोजने की कला सीखें। अभिशाप को भी वरदान में मे बदलना सीखें | वे पारतंत्र्य के इस जीवन में रोयें- बिलखें नहीं, अपितु आत्म-मंथन करें, स्वयं के द्वारा हुए अपराधों का पर्यवेक्षण करें। भावी जीवन मे उनकी पुनरावृत्ति न करने का संकल्प करें। यदि पर्यवेक्षण से गुजरने पर किसी को ऐसा लगे कि उसके द्वारा कोई अपराध नहीं हुआ है तो यह मानकर अपने मन को समझाए कि संभवतः कोई मेरा पूर्व का संस्कार ऐसा रहा होगा, जिसका प्रतिफल मैं आज भोग रहा हूं। मैं तो बंदी हूं, परतंत्र हूं, पर संसार में ऐसे भी तो बहुत सारे प्राणी हैं, जो व्यावहारिक दृष्टि से बंदी नहीं हैं, पर प्रकृतिदत्त ऐसी परतंत्रता में जकड़े हुए हैं कि उनका जीवन किसी भी बंदी से कम क्लेशपूर्ण और कष्टमय नहीं है । मैं पूछना चाहता हूं, क्या अंधे, बहरे, मूक, पंगु, विकलांग आदि का जीवन ऐसा ही नहीं है ? वे देख नहीं सकते, सुन नहीं सकते, बोल नहीं सकते, चल नहीं सकते, शरीर की अनेक आवश्यक क्रियाएं महके अब मानव-मन ८० Jain Education International अंधकार में प्रकाश खोजें · डाल क्योंकि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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