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PAT सबसे बड़ आधार और साधन है । पर आज उसका जो स्वरूप लोगों के सामने है, वह संतोषप्रद नहीं है । वह अपनी गुणात्मकता को सुरक्षित नहीं रख पाया है । धर्मग्रन्थों एवं पत्थों की सीमाओं में जकड़ा हुआ पड़ा है । जन-जीवन के व्यवहार और आचरण से उसका संबंध कटता-सा जा रहा है । क्या यह मानवता की विडम्बना नहीं है ? मैं नहीं समझता, उन ऊंचेऊंचे आदर्शों से क्या बनने का है, जब जीवन के व्यवहार और आचरण में उनकी तनिक भी झलक नहीं है । लोग इस बात पर ध्यान क्यों नहीं देते कि धर्म मात्र परलोक-शुद्धि के लिए नहीं है, वह इस जीवन को भी विकसित और उन्नत बनाने का साधन है । फिर यह भी तो समझना चाहिए कि जो धर्म वर्तमान के जीवन को उन्नत और पवित्र नहीं बनाता, वह परलोक की शुद्धि का साधन कैसे बन सकेगा ? अपेक्षा है, धर्म को वर्तमान जीवन के व्यवहार एवं आचरण की पवित्रता का साधन बनाया जाए । इससे परलोक तो स्वयं सुधर जाएगा । उसके बिगड़ने का कोई प्रश्न ही नहीं है । अणुव्रत आंदोलन व्यक्ति के वर्तमान जीवन को सुधारने का कार्यक्रम है । आचरण और व्यवहार की पवित्रता का उपक्रम है । इस आंदोलन के व्यापक फैलाव से नैतिक, चारित्रिक एवं मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा को सुदृढ़ आधार प्राप्त होगा । आप आंदोलन के छोटे-छोटे संकल्पों को स्वीकार करें । निश्चय ही आप सच्चे धार्मिक बनने का गौरव प्राप्त कर सकेंगे ।
बक्सी तालाब २६ मई १९५८
धर्म वर्तमान जीवन से जुड़े
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