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धर्म वर्तमान जोवन से जुड़े
मूलभूत समस्या क्या है ?
संसार की आबादी बड़ी तीव्र गति से बढ़ रही है। पर उस अनुपात में मानवता नहीं बढ़ रही है, बल्कि उसका क्रमशः ह्रास हो रहा है, ऐसा कहना अनुपयुक्त नहीं होगा। आदमी की नैतिकता बड़ी तेजी से रसातल की ओर जा रही है। उसी का यह प्रतिफल है कि चारों ओर भ्रष्टाचार फैल रहा है, हिंसा का वातावरण बन रहा है। इसका कारण क्या है ? इसका मूलभूत कारण है-अनास्था का भाव । आनास्था का भाव किसके प्रति ? अनास्था का भाव नैतिकता, प्रामाणिकता, आत्मनिष्ठा, अहिंसा आदि तत्वों के प्रति । इस अनास्था के कारण आज एक व्यापारी इस भाषा में सोचने लगा है कि अप्रामाणिकता, मिलावट, झठा तोल-माप आदि के बिना व्यापार नहीं चल सकता। यदि वह गलत काम न करे तो उसे भूखा मरना पड़े। एक राज्याधिकारी सोचता है कि रिश्वत लिए बिना वह अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता। रिश्वत से सर्वथा दूर रहकर भी वह अपना काम चला सकता है, यह उसके समझ से परे की बात हो रही है। एक विद्यार्थी सोचता है कि परीक्षा में नकल करना तो आवश्यक है, अन्यथा वह उत्तीर्ण नहीं हो सकता। जनता सोचती है कि अपनी मांगें मनवाने के लिए जब तक तोड़-फोड़ और हिंसा नहीं की, तब तक सरकार मानेगी नहीं। सरकार भी यह सोचती है कि जब तक गोली नहीं चलाई जाएगी, तब तक यह जनता माननेवाली नहीं है । इस अनास्था ने सचमुच समाज और राष्ट्र का बहुत बड़ा अहित किया है। यदि हम समाज और राष्ट्र को विकासोन्मुख देखना चाहते हैं तो इस अनास्था को मिटाना होगा। इसके स्थान पर चारित्रिक एवं नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था जगानी होगी। मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा करनी होगी। तो परलोक स्वयं सुधरेगा
धर्म नैतिक, चारित्रिक एवं मानवीय मूल्यों की जन-जन में प्रतिष्ठा
महके अब मानव-मन
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