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हिंसा से प्राप्त सुख-सुविधाओं के साधनों की प्रचुरता में भी नहीं हो सकती ।
सत्य-अहिंसा का प्रचार क्यों ?
बन्धुओ ! हिंसा और असत्य का संसार से सर्वथा उच्छेद हो जाएगा, ऐसा सोचना अतिकल्पना है। ऐसा न कभी अतीत में सम्भव हुआ है और न भविष्य में कभी संभव है । प्रश्न किया जा सकता है कि तब अहिंसा और सत्य का प्रचार क्यों किया जाए ? उसका क्या उद्देश्य हो सकता है ? उत्तर सीधा सा है - हिंसा और असत्य अहिंसा और सत्य पर हावी न हो जाएं, इसलिए इनका प्रचार आवश्यक है ।
जितनी भी दुष्प्रवृत्तियां आज हम जन-जीवन में देख रहे हैं, उनके मूल में असत्य और हिंसा ही हैं । उनको मिटाने के लिए जन-जीवन को अधिकाधिक सत्य-अहिंसामय बनाना होगा । अणुव्रत आंदोलन इसी पवित्र उद्देश्य से कार्य कर रहा है । इस कार्यक्रम की सफलता के लिए राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का सक्रिय सहयोग अपेक्षित है । आप भी राष्ट्र के नागरिक हैं। क्या आप मेरी अपेक्षा को पूरी करेंगे ?
क्लेक्टरेट; लखनऊ १४ मई १९५८
आस्था सम्यक बने
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