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________________ धर्म का शुद्ध स्वरूप प्रकट हो धर्म जीवन की पवित्रता का अद्वितीय साधन है । सुख और शांति का एकमात्र आधार है। पर हम देखते हैं कि आज का बौद्धिक मानव उसका नाम भी सुनना पसन्द नहीं करता। उसके प्रति उसके मन में एक खीझ और नफरत का भाव है। यही कारण है कि उसकी चर्चा सामने आते ही वह नाकभौंह सिकोड़ने लगता है । ऐसा क्यों ? इसका कारण बहुत स्पष्ट है । धर्म की गुणात्मकता आज सुरक्षित नहीं रही है। तथाकथित धार्मिकों ने उसे प्रदर्शन, आडम्बर और रूढ़ परम्पराओं में जकड़ दिया है। उसे स्वार्थसिद्धि का साधन बना लिया है। सचमुच ही यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बनी है। धर्म के साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है। ऐसी स्थिति में बौद्धिक व्यक्ति धर्म से नफरत करे, उससे दूर भागने का प्रयास करे तो किसी को भी आश्चर्य क्यों होना चाहिए। हां, ऐसी स्थिति में भी वह उससे नफरत नहीं करता है, उससे दूर नहीं भागता है, तो आश्चर्य की बात अवश्य है । मेरा दढ़ विश्वास है, यदि धर्म अपने मूल स्वरूप को पुनः प्राप्त कर ले, वह जीवन की पवित्रता और जीवन-जागृति का निर्विकल्प साधन बन जाए, आन्तरिक सुख और शान्ति का आधार बन जाए तो बौद्धिक वर्ग तो क्या, कोई बड़ा-से-बड़ा नास्तिक भी उससे घणा नही कर सकता। मैं आपसे ही पूछना चाहता हूं, जीवन की पवित्रता कौन नहीं चाहता ? सुख और शांति की आकांक्षा से कौन नहीं बंधा है ? जीवन-जागृति किसे काम्य नहीं है ? अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से हम धर्म को उसके मौलिक एवं शुद्ध स्वरूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि आज तथाकथित धर्माधिकारियों ने धर्म को जाति, वर्ण, वर्ग, सम्प्रदाय""की संकीर्ण सीमाओं में बांध दिया है, पर अपने शुद्ध स्वरूप में तो वह आकाश की तरह व्यापक है, सार्वजनीन है। जाति, वर्ण, वर्ग, सम्प्रदाय आदि की सभी प्रकार की सीमाओं से सर्वथा अतीत है। अणुव्रत धर्म के उसी व्यापाक रूप को जन-जन के जीवन में प्रतिष्ठित करने का कार्यक्रम है, अभियान है। आचरण और व्यवहार के स्तर पर व्यक्ति-व्यक्ति को धार्मिक बनाने का पवित्र संकल्प है। यही तो कारण है कि हजारों-लाखों लोग इस अन्दोलन से न केवल प्रभावित और आकर्षित ७२ महके अब मानव-मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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