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कहा गया है कि अणुवती ऐसा झूठ न बोले, जिससे किसी का अनर्थ हो जाए। इसी क्रम में प्रकार अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह से सम्बन्धित नियम भी इतने व्यावहारिक बनाए गए हैं कि जिन्हें आम आदमी अच्छे ढंग से निभा सकता है। इसलिए मैंने कहा कि अणुव्रत के नियमों को स्वीकार करने में घबराने की कोई अपेक्षा नहीं है। अपेक्षा इतनी ही है कि व्यक्ति की संकल्प-चेतना जागे । इस चेतना के जागने के पश्चात् व्रत-ग्रहण का मार्ग स्वयं निर्बाध हो जाता है। क्या मैं विश्वास करूं कि आप अपनी संकल्प-चेतना को जगाकर मानवता के राजमार्ग पर आएंगे ?
उन्नाव १ मई १९५८
महके अब मानव-मन
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