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छह
अभिरुचि देखकर कुछ साहित्यकर्मी व्यक्तियों ने पुरुषार्थ किया । उनके पुरुषार्थ की निष्पत्ति है प्रवचन पाथेय ग्रन्थमाला के सतरह पुष्प ।
ग्रन्थमाला के अठारहवें पुष्प 'महके अब मानव-मन' में सन् १९५८ के प्रवचन संकलित हैं । इसके संकलन और सम्पादन में मुनि धर्मरुचि की परिष्कृत रुचि का अच्छा उपयोग हुआ है । उसकी खोजी वृत्ति और गहन परिश्रम का परिणाम है प्रस्तुत पुस्तक | सम्पादक के आनन्द की अनुभूति और पाठकों को प्रेरणा- इन दो उद्देश्यों से अभिप्रेरित यह पुष्प स्वाध्यायरसिक लोगों के मन को महकाता रहे, यही अभीष्ट है ।
१६।९।१९९६ जैन विश्वभारती, लाडनूं
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गणाधिपति तुलसी
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