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राष्ट्र
के उज्ज्वल भविष्य का आधार
बुनियाद पर ध्यान केन्द्रित हो
मनुष्य का जीवन एक भवन की तरह है । जिस प्रकार भवन की मजबूती उसकी नींव की मजबूती पर निर्भर करती है, उसी प्रकार जीवन की स्वस्थता विद्यार्थी - जीवन की स्वस्थता पर निर्भर है । विद्यार्थी जीवन मनुष्य की बुनियाद है । यदि विद्यार्थी अवस्था में सुसंस्कारों का वपन नहीं होता, तो जीवन कभी भी स्वस्थ नहीं हो सकता, इसलिए अध्यापकों और अभिभावकों को बच्चों में सुसंस्कार - वपन की दृष्टि से पूर्ण सजग रहना चाहिए । ऐसा करके ही वे एक स्वस्थ समाज और विकसित राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं ।
हम इस बात को समझें कि विद्यार्थी जीवन वृक्ष की कोमल टहनी जैसा होता है । उसे चाहे जिस ओर झुकाया जा सकता है, मोड़ा जा सकता है । वही टहनी जब मोटी हो जाती है, तब फिर उसे झुकाना, मोड़ना कठिन हो जाता है । इस रूपक के माध्यम से मैं आप सबको यह प्रेरणा देना चाहता हूं कि आप विद्यार्थी जीवन के इस स्वर्णिम अवसर का उपयोग करते हुए छात्र-छात्राओं को चरित्रशीलता, नीतिनिष्ठा, विनय, अनुशासन के पथ पर अग्रसर करें । इन संस्कारों के अभाव में उनका भविष्य धुंधला बन जाता है, जो न उनके स्वयं के लिए काम्य है और न राष्ट्र के लिए ही । अपेक्षित है धार्मिक शिक्षा
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बच्चों को सुसंस्कारित करने के लिए भारतीय शिक्षा-पद्धति में उन्हें व्यापक और उदार धार्मिक शिक्षा देने का क्रम रहा है। लेकिन दुर्भाग्य से आज वह क्रम बंदप्रायः हो गया है । उसीका यह दुष्परिणाम है कि आज की नई पीढ़ी में दुःशील, उच्छृंखलता, अनुशासनहीनता जैसी बुराइयां पनप रही हैं । इस क्रम को पुनः प्रारम्भ कर इन अवांछनीय प्रवृत्तियों को बढ़ने से रोका जा सकता है ।
विद्यार्थी स्वयं सजग रहें
विद्यार्थी वर्ग से मैं कहना चाहता हूं कि वह संस्कारों की दृष्टि से
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बुनियाद पर ध्यान केन्द्रित हो
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