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आचार को प्रतिष्ठा
ज्ञानी कौन ?
आज मैं आप वकीलों के बीच उपस्थित हूं। वकील बौद्धिक होते है । पर मैं आपसे कहना चाहता हूं कि आप केवल बौद्धिक व्यायाम में ही अपने को न खपा दें। यद्यपि बोध या बौद्धिकता भी जीवन-विकास का एक पहल और पक्ष है। पर आपको यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जिस बोध के साथ सम्यक् आचार का योग नहीं है, वह बोध या ज्ञान व्यक्ति के लिए भार से अधिक और कुछ भी नहीं है । हमारे धर्मशास्त्रों में उस विद्या को अविद्या और उस ज्ञान को अज्ञान कहा गया है, जो सच्चरित्र से रहित है। इस सन्दर्भ में यह बात अवश्य जान लेने की है कि यहां 'अविद्या' और 'अज्ञान' शब्द विद्याभाव और ज्ञानाभाव के वाचक नहीं हैं, अपितु कुत्सित विद्या और कुत्सित ज्ञान के अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे यहां ज्ञानी का आचारसम्पन्न होना आवश्यक माना गया है, अन्यथा अच्छा पढ़ा-लिखा होने के उपरान्त भी वह अज्ञानी ही है। इस परिप्रेक्ष्य में आप आचार का मूल्यांकन करें। बदलता मूल्य .
___ आप देखें, हमारी भारतीय संस्कृति में पूज्य उसे ही माना गया है, जिसका आचार ऊंचा है, भले ज्ञान की अपेक्षा से वह क्षीण भी क्यों न हो। यह आचार की प्रतिष्ठा का ही परिणाम है कि यहां त्याग और तप को सर्वोच्च मूल्य दिया गया। पर आज स्थिति बदल चुकी है। त्याग-तप के स्थान पर अर्थ सर्वोच्च मूल्य बन रहा है । सर्वत्र उसी की प्रतिष्ठा हो रही है । आचार को बहुत गौण कर दिया गया है। इसका दुष्परिणाम हमारे सामने प्रत्यक्ष है। आदमी पैसे की प्राप्ति के लिए बड़ा-मे-बड़ा गलत कार्य करने को तैयार हो जाता है । ईमान और भगवान को भी दांव पर लगाने से नहीं हिचकिचाता। इससे समाज में अनैतिकता, असदाचार, हिंसा आदि बुराइयां बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं । आपसी सौहार्द और मंत्री के सम्बन्ध कच्चे धागों की तरह टूट रहे हैं। ऐसी विकट स्थिति में आप लोगों का कर्तव्य है कि आप अपने-आपमें एक मोड़ लाएं, जिससे कि आपका जीवन ऊंचा और अच्छा बने । साथ-ही-साथ
आचार की प्रतिष्ठा
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