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बड़ा कौन ?
विपरीत धारा में बहता जन-जीवन
बड़प्पन की कसौटी ऊंचे कुल से पैदा होना नहीं है। सत्ताधारी और विपुल वैभवशाली होना भी नहीं है। सही माने में बड़प्पन तो सदाचरण, संयम और संतोष में है। व्यक्ति अपने जीवन को जितना अधिक सदाचारी बनाएगा, संयम से भावित करेगा, संतोष से पुष्ट करेगा, वह उतना ही ऊंचा और श्रेष्ठ होगा। पर वर्तमान की त्रासदी यह है कि जीवन-मूल्यांकन के मापक गलत हो गए हैं । आज बड़ा वह माना जाता है, जिसके पास भौतिक साधनों की प्रचुरता है, जो बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं का स्वामी है, जिसके अधिकार में विपुल पूंजी है, जिसका खजाना सोने-चांदी से भरा पड़ा है। मेरी दृष्टि में यह मिथ्या दृष्टिकोण है। उसकी यह दुष्परिणति है कि जनजीवन विपरीत धारा में बहता जा रहा है । व्यक्ति थोड़ी-सी अर्थ-प्राप्ति के लिए अनुचित-से-अनुचित और अवांछनीय-से-अवांछनीय कार्य करते नहीं सकुचाता । इस त्यागप्रथान संस्कृति वाले देश की यह कैसी स्थिति बनी है ! सच्चा सुख
__ मैं कई बार सोचता हूं, आदमी धन के पीछे बेतहाशा क्यों दौड़ता है ? आखिर उसे मिलता क्या है ? समाधान मिलता है, वह उसमें कुछ सुख देखता है । सुख की आकांक्षा ही उसे इस ओर प्रेरित और प्रवृत्त करती है। पर गंभीर प्रश्न तो यह है कि धन से प्राप्त होनेवाला सुख क्या सच्चा सुख है ? यदि धन में ही सुख होता तो बड़े-बड़े राजे-महाराजे और धनकुबेर उसे त्यागकर अकिंचन साधु क्यों बनते ? वस्तुतः सच्चा सुख संयम में है, आत्म-नियंत्रण में है। चूंकि मानव मननशील प्राणी है, वास्तविक और कृत्रिम का विवेक करने का सामर्थ्य उसमें है, इसलिए उससे अपेक्षा की जाती है कि वह इस सन्दर्भ में गहन मनन कर सच्चे सुख का पथ स्वीकार करे।
संयम या आत्म-नियंत्रण से मिलनेवाले सुख की बात मैं क्या बताऊं ! वह तो अनिर्वचनीय है । केवल उसका अनुभव ही किया जा सकता
महके अब मानव-मन
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