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दुर्लभं भारते जन्म
संस्कृत के किसी प्राचीन कवि ने कहा है- 'दुर्लभं भारते जन्म ।' इसका शब्दार्थ है - भारतवर्ष में जन्म मिलना दुर्लभ है। प्रश्न होता है, ऐसा क्यों ? भारतवर्ष में ऐसी कौन-सी विशेषता या विलक्षणता है कि जिसके कारण यहां जन्म ग्रहण करना इतना ऊंचा माना गया है, इतनी बड़ी उपलब्धि माना गया है, जबकि दूसरे - दूसरे देश भी तो धन, वैभव, सत्ता और अधिकार के क्षेत्र में समय-समय पर विश्व में अग्रणी रहे हैं, आज भी हैं ? मैं मानता हूं, 'दुर्लभं भारते जन्म' इस उक्ति के मूल में भावना यह है कि भारतवर्ष में पैदा होने वाला भारतीय संस्कृति में जीता है । भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां धन, वैभव, सत्ता, अधिकार आदि को सर्वोच्च मूल्य नहीं दिया गया है। यहां तो ऊंचा जीवन उसे ही माना गया है जो संयम, सात्विकता और सच्चरित्र के मार्ग पर अग्रसर है । यद्यपि भौतिक दृष्टि से यह अभावों का जीवन माना जा सकता है, पर अध्यात्म दृष्टि से यही श्रेष्ठ जीवन है । जो व्यक्ति इस प्रकार का जीवन जीता है, वह सचमुच ही अत्यंत सौभाग्यशाली है । क्या भारतीय जन आज इस बात को भूल नहीं रहे हैं ? मुझे तो ऐसा ही लगता है कि अधिकांश लोग श्रेष्ठ जीवन के उन मूल्य-मानकों को भूल रहे हैं । जीवन-मूल्यांकन का उनका दृष्टिकोण बहिर्मुखी और भौतिकवादी बन रहा है। आध्यात्मिक दृष्टि या अन्तर्मुखी दृष्टि गोणप्रायः हो रही है । मेरी दृष्टि में राष्ट्र की यह सबसे बड़ी क्षति है । इसका दुष्प्रभाव हमारे सामने प्रत्यक्ष है । राष्ट्रीय चरित्र में अभूतपूर्व गिरावट आ रही है । जो भारतवर्ष सारे संसार को नीति, सत्यनिष्ठा की शिक्षा देता था, आज वहीं खुलकर अनीति खेल रही है । भ्रष्टाचार पनप रहा है । अन्याय हो रहा है। झूठ और अप्रामाणिकता का नाच हो रहा है । क्या भारतीयों के लिए यह लज्जा की बात नहीं है ? यदि वे गौरव के साथ जीना चाहते हैं तो उन्हें गहराई से आत्मालोचन करना होगा । जो-जो बुराइयां उनके जीवन में घर कर गई हैं, उन्हें एक-एक को चुन-चुनकर बाहर करना होगा । उनके स्थान पर सत्य, सात्विकता, संतोष, शील, संयम आदि तत्त्वों की प्रतिष्ठा करनी होगी। अपने जीवन
न्याय,
महके अब मानव-मन
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