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जोवन का अन्तरंग पक्ष पुष्ट हो
जीवन के दो पक्ष हैं- अंतरंग और बहिरंग । अंतरंग पक्ष के विकास के लिए आत्म-संयम, त्याग, तप, इच्छा-निरोध, अनासक्ति आदि साधन हैं । भौतिक सुख-सुविधा और वासना जीवन को उसकी अन्तर्मखता से पराङ्गमुख और बहिपक्ष की ओर उन्मुख बनाती है । इसका परिणाम यह होता है कि जीवन अस्त-व्यस्त व अनियंत्रित बन जाता है। इस स्थिति में अनैतिकता उसके जीवन में अपना अड्डा बना लेती है । भ्रष्टाचार बुरी तरह प्रभावी बन जाता है। जायज-नाजायज, करणीय-अकरणीय का विवेक समाप्तप्रायः हो जाता है । दुर्भाग्य से आज राष्ट्र में ऐसी ही स्थिति बन रही है। राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक और वैयक्तिक जीवन में अनीति का पूर-सा आ रहा है । यदि समय रहते इस तीव्र प्रवाह को नहीं रोका गया तो सात्विक, संयममय जीवन-पक्ष की दीवार कभी भी ढह सकती है। क्या यह बात आपको काम्य है ? यदि नहीं है तो आपको आज से ही सजग होना होगा। व्यक्ति-व्यक्ति की सजगता से ही इस स्थिति से निपटा जा सकता है । मेरा मानना है, जिस क्षेत्र में जन-चेतना जागृत हो जाती है, उस क्षेत्र में करणीय कुछ भी असंभव नहीं रहता । अणुव्रत आन्दोलन इस दिशा में आपके लिए पथ का आलोक है । वह अनैतिकता के प्रवाह को रोककर जीवन के आध्यात्मिक अंतरंग सात्विक पक्ष को सुरक्षा प्रदान करना चाहता है । असत्य और अप्रामाणिकता के आघातों से दबती-पिसती मानवता को संबल प्रदान करना चाहता है। आप इस आन्दोलन को निकटता से देखें, समझे और इसकी छोटी-सी आचारसंहिता को संकल्प के स्तर पर स्वीकार करें। उसके अनुसार अपने जीवनव्यवहार को ढालें । निश्चित ही आपके जीवन का अन्तरंग पक्ष पुष्ट होगा। आपको पदार्थनिरपेक्ष सहज सुख और आनन्द की अनुभूति हो सकेगी। आप अपने जीवन की सार्थकता अनुभव कर सकेंगे।
एटा ९ अप्रैल १९५८
जीवन का अन्तरंग पक्ष पुष्ट हो
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