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मानता हूं, जैन संस्कृति अपनी गुणात्मकता के आधार पर सारे संसार में प्रसार पाने की क्षमता रखती है । पर जैनों का अपना प्रमाद ही उसे इस प्रसार से रोके हुए है। यदि अब भी जन लोग जागरूक बनकर इस दिशा में सक्रिय बनते हैं तो उसके व्यापक फैलाव के कार्य में काफी सफलता मिल सकती है । अपेक्षा है, जैन लोग सामूहिक रूप में इस बिन्दु पर चिंतन करें, गंभीरता से चिंतन करें।
एटा ९ अप्रैल १९५८
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महके अब मानव-मन
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