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व्यसनमुक्त जीवन जीएं
विवेक-शक्ति का उपयोग हो
____ मनुष्य जीवन दुर्लभ है-यह शास्त्रों की स्पष्ट उद्घोषणा है। इस दुर्लभता को प्राप्त कर प्राणी सत्प्रवृत्त रहे, इसी में उसके जीवन की सार्थकता है । उसे दुर्व्यसनों में पशुओं की तरह गुजार देना बहुमूल्य जीवन को कोड़ी के मोल बेच देने के तुल्य है । मैं कई बार सोचा करता हूं कि मनुष्य एक मननशील प्राणी है । भले और बुरे का विवेक करने की शक्ति उसमें है । उस शक्ति का उपयोग वह क्यों नहीं करता ? क्यों नहीं वह दुष्प्रवृत्तियों से विरत होता है ? क्यों नहीं अपने को सत्प्रवृत्तियों में संलग्न करता है ? आज शराब, मांस, जुआ. व्यभिचार, मिलावट, ब्लेकमार्केटिंग जैसी अनैतिक एवं कलुषित वृत्तियों ने उसके जीवन को जर्जरित बना रखा है। ये ही वे दुर्गुण हैं, जो मनुष्यजीवन को बर्बादी के कगार पर पहुंचा देते हैं। इनसे एक ओर जहां आत्मा के सत्य, शील, संतोष, समता, सौजन्य, सदाचार जैसे सदगुणों का नाश होता है, वहीं दूसरी ओर पैसे की बर्बादी और पारिवारिक जीवन की शांति भी खण्डित होती है, व्यवस्थागत ढांचा भी चरमराता है । यही तो कारण है कि जहां-जहां ये दुर्गुण प्रभावी हुए हैं, वहां-वहां जीवन नारकीय जैसा बन गया है । आप जरा सोचें, शराब भी कोई पीने की चीज है ? उसको पीने से इन्सान अपनी गुणात्मकता को खोकर हैवान बन जाता है, अपनी सुध-बुध तक गंवा बैठता है । मांसाहारी लोग इस बिन्दु पर अपना ध्यान क्यों नहीं केन्द्रित करते कि जिन प्राणियों का मांस वे खा रहे है, उन प्राणियों को भी अपना जीवन उतना ही प्यारा है, जितना उनको अपना ? यह करता क्यों ? फिर एक बात और भी है। चूंकि मांस तामसिक भोजन है, इसलिए यह बहुत स्पष्ट है कि वह व्यक्ति की वृत्तियों को तामसिक बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अनेक प्रकार की अमानुषिक प्रवृत्तियों में संलग्न होता है। इसलिए मैं सभी से कहना चाहता हूं कि जिनमें ये या इस प्रकार की बुराइयां हैं वे अविलम्ब इनसे छूटने के प्रति जागरूक बनें, संकल्पबद्ध बनें। साहस जुटाएं
अणुव्रत आंदोलन मानव-जीवन में व्याप्त बुराइयों पर सीधी चोट
महके अब मानव-मन
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