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________________ महके अब मानव-मन शराब विवेक को कुंद बनाती है __ आज के दुष्प्रवृत्तियों एवं दुर्व्यसनों से ग्रस्त जीवन को देखकर मेरे मन में विचार आता है कि मानव का विवेक कहां खो गया है ? उसकी मनन-शक्ति कुंठित क्यों हो गई है ? अन्यथा वह क्यों नहीं सोचता कि यह जिंदगी क्या पागल की तरह वृथा और निस्सार गंवा देने की है ? क्या मानव जीवन इतना ही है- मनुष्य पैदा हुआ, बड़ा हुआ, उन्मत्त की तरह दुष्प्रवृत्तियों में फंसा रहा और एक दिन आया कि जीवन-नाटक का पटाक्षेप हो चला ? मैं पूछना चाहता हूं, शराब जैसी दुष्प्रवृत्तियों में फंसा मानव क्या यही नहीं करता ? बन्धुओ ! शराब मनुष्य के विवेक को कुंद बना देती है। उसका सेवन करने वाला अपना होश-हवाश गंवा बैठता है। किन्तु बात यहां पर पहुंचकर भी समाप्त नहीं होती, और आगे बढ़ती है। जहां शराब ने अपने पैर पसारे, चोरी, व्यभिचार, हत्या, जुआ जैसी अनेक बुराइयां स्वतः चली आती हैं और व्यक्ति का शतमुखी पतन प्रारम्भ हो जाता है । कौन इस तथ्य से अपरिचित है कि शराब रूपी दुर्दम पिशाचिनी ने अनगिन घरों को श्मशान बना दिया है। इसलिए जो लोग इस बुराई से ग्रस्त हैं, वे अविलंब इसको छोड़ने के लिए अपने साहस को जटाएं और संकल्पबद्ध बनें। इसी प्रकार जो लोग इससे बचे हुए हैं, वे भी भविष्य में कभी इसका प्रयोग न करने के लिए संकल्पित हों । इससे उनका स्वयं का जीवन तो स्वस्थ होगाही-होगा, गांव का वातावरण भी स्वस्थ बनेगा। मानव क्यों नहीं सोचता ? बन्धुओ ! मैं मानता हूं, ईमानदारी और सत्याचरण मानव जीवन की शोभा हैं। जिस व्यक्ति के जीवन में ईमानदारी, सचाई और नैतिकता नहीं, वह कहने भर को मानव है, मात्र मानवीय भौतिक पिंड है। उसमें मानवता कहां? पर कहना नहीं होगा कि आज राष्ट्र के जन-जीवन में अधिकांशतः ऐसा ही कुछ दिखाई देता है। यह मात्र मेरा ही अनुभव नहीं, अपितु आपका भी ऐसा ही होगा। स्वार्थों में अंधा बना मानव अपना ईमान महके अब मानव-मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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