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हो सकेगा और न वह स्वयं भी सुख से जीने की भूमिका में पहुंच पाएगा । हम इस बात को गंभीरता से समझें कि समष्टि का मूल व्यष्टि है । चूंकि व्यक्तिव्यक्ति समाज और राष्ट्र का पूरक है, इसलिए समाज-सुधार और राष्ट्र-सुधार
लिए व्यक्ति-व्यक्ति को सुधरना जरूरी है। हम जन-जन को यह तथ्य समझाने का प्रयास कर रहे हैं । अणुव्रत आन्दोलन अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि से संबंधित छोटे-छोटे संकल्पों के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति के जीवन को एक नया मोड़ देना चाहता है । उसके सुधार का मार्ग प्रशस्त करता है । मैं समाज निर्माण एवं राष्ट्र-निर्माण की तड़प रखने वाले सभी लोगों से पूछना चाहता हूं, क्या वे व्यक्ति-सुधार के इस कार्यक्रम को अपनाने का साहस करेंगे ? पर मैं इसका मात्र मौखिक नहीं, बल्कि क्रियात्मक उत्तर चाहता हूं | यदि उत्तर सकारात्मक होगा तो मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि समाज-सुधार और राष्ट्र-सुधार की उनकी भावना अवश्य साकार होगी ।
दौसा
१३ मार्च १९५८
समाज-सुधार का आधार - व्यक्ति-सुधार
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