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अणुव्रत आन्दोलन का लक्ष्य *
कैसा है- यह एक
भौतिक विकास के साथ नैतिक विकास का संतुलन रहे तो अशान्ति उभरती नहीं । परन्तु जब जीवन का आध्यात्मिक पक्ष दुर्बल होता है तो पग-पग पर अशान्ति का अनुभव होने लगता है । आज जो भय, संदेह और अशान्ति का बोलबाला है, उसका कारण आध्यात्मिक पक्ष का दुर्बल होना ही है । अणुव्रत - आन्दोलन का लक्ष्य है- आध्यात्मिक भावना को जगाना । वैयक्तिक, सामाजिक और राजनैतिक जीवन के सभी पक्षों में विकार घुस आये हैं । अणुव्रत आन्दोलन जीवन के इन पक्षों को मिटाने की बात नहीं कहता । वह तो कहता है कि इनमें जो अप्रामाणिकता और विकृति है, उसे मिटाने का यत्न किया जाये । चरित्र - विकास के बिना कोई भी समाज और राष्ट्र उन्नत नहीं हो सकता । भारत का राष्ट्रीय चरित्र प्रश्न है । इसका उत्तर प्रत्येक भारतीय को देना है। यहां के लोग दर्शन की बहुत ऊंची-ऊंची बातें करते हैं । सैद्धांतिक गौरव की चर्चा में भी बहुत आगे बढ़े हुए हैं । किन्तु आचरण की गहराई उतनी नहीं है, जितनी कि होनी चाहिए । ये जो विचार और आचार 'कथनी और करनी' की खाई है, उसे पाटने के लिये हमें सामूहिक प्रयत्न करना है । धर्मस्थान में धर्म की उपासना और कार्यक्षेत्र में उसकी पूर्ण विस्मृति, यह विपर्यास है । इसी कारण धर्म बदनाम हो रहा है। अणुव्रत - आन्दोलन का लक्ष्य है कि यह विपर्यास मिटे | बुद्धिवादी लोग धर्म के मौलिक तत्व - अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह के प्रति निष्ठावान बन सकें, इसलिए उनके सामने धर्म का व्यावहारिक रूप प्रस्तुत करना भी आन्दोलन का एक लक्ष्य है । मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है कि इस दिशा में अच्छी गति से कार्य हो रहा है । मैं इस बात से भी अत्यन्त उत्साहित हूं कि लगभग सभी संप्रदाय के लोगों ने इसे समानरूप से अपनाया है । अणुव्रत आन्दोलन के प्रचारप्रसार के लिये हमने यह तीसरी लम्बी यात्रा की है । इस वर्ष हमने आन्दोलन का एक विशेष कार्यक्रम चुना है । मद्य-निषेध, मिलावट - निषेध और
* प्रेस कान्फ्रेंस में प्रदत्त वक्तव्य ।
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महके अब मानब-मन
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