________________
ज्ञान की सार्थकता कब ?
मैं विद्यार्थी हूं
ज्ञान अनन्त है, असीम है, जबकि जीवन के क्षण सान्त हैं, ससीम हैं । इस स्थिति में उसकी साधना-आराधना में व्यक्ति का पूरा जीवन खप सकता है। इस अपेक्षा से व्यक्ति जीवनभर विद्यार्थी है। मैं अपने-आप को एक विद्यार्थी ही मानता हूं। यही कारण है कि विद्यार्थियों के बीच आकर मुझे सहज प्रसन्नता की अनुभूति होती है। उपस्थित विद्यार्थियों से भी कहना चाहता हूं कि आप भी अपने को जीवन भर विद्यार्थी ही बनाये रखने का संकल्प संजोएं । हां, इसके लिए आपको अपनी ज्ञान-यात्रा सतत चालू रखनी होगी।
सदाचारशून्य ज्ञान जड़ है
। भारतीय जीवन में ज्ञानाराधना की अमिट लौ सदा से जलती रही है। अंतर् जीवन के अनेक गंभीर रहस्यों का उद्घाटन इस विद्या के अनुशीलन से ही संभव बन सका है। उन रहस्यों से न केवल भारतीय समाज, अपितु पूरा मानव-समाज लाभान्वित हो रहा है। पर इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन विद्यालब्ध तत्त्वों पर अपने जीवन-व्यवहार को टिकाए रखने की दृष्टि से आप जागरूक रहें। मैं मानता हूं, ज्ञान की सही साधना यही है। दूसरे शब्दों में इसे चेतनज्ञान या चेतनशिक्षा कह सकते हैं । मेरी दृष्टि में वह ज्ञान जड़ है, वह शिक्षा व्यर्थ है, जो सदाचरण से शून्य है । तत्त्वतः ज्ञान अपने आप में प्रकाशपुंज है। जब वह चेतनात्मक बनता है, तभी व्यवहार्य एवं उपयोगी बनता है। मैं चाहूंगा, विद्यार्थी इस अमर तत्त्व को हृदयंगम करते हुए चेतनज्ञान की उपलब्धि के लिए यत्नशील हों। उनकी यह यत्नशीलता और जागरूकता ही उन्हें अपने जीवन की सार्थकता प्रदान करेगी। राष्ट्र-विकास की बाधा
आज राष्ट्र की स्थिति कैसी है, यह किसी से छुपा नहीं है। कितने खेद की बात है कि आज अन्य देशों की तुलना में भारत के लोगों का
१८
महके अब मानव-मन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org