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________________ दीक्षा : संयममय जीवन का मंगलाचरण दीक्षा का माहात्म्य आज आपके बोरावड़ में दीक्षा का कार्यक्रम है। दीक्षा भारतीय संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है। दीक्षा गृहस्थ-जीवन की समाप्ति और साधु-जीवन की शुरुआत है। असंयम-जीवन की समाप्ति और संयममय जीवन का मंगलाचरण है। कुछ लोग कह देते हैं कि दीक्षित जीवन एक कारागार है । उन लोगों से मैं कहना चाहता हूं कि वे इस विषय पर पुनर्विचार करें। यदि गहराई से वे ध्यान देंगे तो उन्हें अनुभव होगा कि दीक्षित जीवन तो उन्मुक्त राजपथ है। इस राजपथ पर कदम बढ़ाने वाला अनिर्वचनीय सुख और शान्ति की मंजिल को प्राप्त होता है। यह वासनाओं के दल-दल से सर्वथा निलिप्त है। स्वार्थों की चकमक से अप्रतिहत है। वैमनस्य और शत्रुभाव के शोलों से अदग्ध है। क्लेश और कदाग्रह से अछूता है। दूसरे शब्दों में साधु-जीवन सात्विकता का जीवन्त रूप है, मानवता के चारित्रिक विकास की एक अनुपम यात्रा है। अपेक्षा है, सभी लोग इसका यथार्थ मूल्यांकन करने का प्रयत्न करें। प्रेरणा का प्रसंग बन्धुओ ! आज जबकि अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के प्रति व्यापक अनाकर्षण का भाव दिखाई दे रहा है, एक युवक महाव्रतों के रूप में इन्हें निभाने का संकल्प ले रहा है। एक तरफ जहां यह जनभाषा बन गई है कि झूठ के बिना जीवन जीया ही नहीं जा सकता, वहां एक युवक यावज्जीवन के लिए झूठ बोलने का परित्याग कर रहा है। क्या यह आप लोगों के लिए प्रेरणा लेने की बात नहीं है ? क्या बच्चे, क्या युवक, क्या बूढ़े, क्या पुरुष, क्या महिलाएं सभी को यह आत्मालोचन करना है कि हमारे में कौन-कौन-सी बुराइयां हैं ? उन सब बुराइयों को या उनमें से कुछेक बुराइयों को हमें अवश्य छोड़ना है। महाव्रतों की दीक्षा नहीं ले सकते तो क्या, अणुव्रतों की दीक्षा तो ले ही सकते हैं। अणुव्रतों को स्वीकार करने का अर्थ है अहिंसा, सत्य आदि का दीक्षा : संयममय जीवन का मंगलाचरण १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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