________________
अध्यात्म और नैतिक शिक्षा की उपादेयता
शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है ?
राष्ट्र के कर्णधारों एवं हित-चितकों के मन में इस बात की बड़ी चिता है कि अनेक-अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी विद्यार्थियों के सही निर्माण का मार्ग प्रशस्त नहीं हो रहा है। उनमें अपेक्षित परिवर्तन की दिशा उद्घाटित नहीं हो पा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि आज की शिक्षा-पद्धति दोषपूर्ण है । वही इस स्थिति के लिए उत्तरादायी है । इसलिए यह स्वर भी चारों ओर से उठ रहा है कि इस दोषपूर्ण शिक्षा-पद्धति को हर हालत में बदला जाना चाहिए। एक अपेक्षा से बात सही भी है । पर सारा का सारा दोष या जिम्मेवारी इसी पर नहीं डाली जा सकती । अलबत्ता इसे मुख्य कारण कहा जा सकता है । यह बहुत स्पष्ट है कि आज की चालू शिक्षापद्धति हमारी भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है । उस पर उस पाश्चात्य संस्कृति का अनपेक्षित / अवांछित प्रभाव आ गया है, जो भारतीय मस्तिस्क के अनुकूल नहीं है ।
समाधान की दिशा
भारतवर्ष एक ऐसा देश है, जहां भोग का नहीं, त्याग का महत्व है । असंयम का नहीं, संयम का महत्व है । धनकुबेरों और सत्ताधीशों का नहीं, ऋषि-मुनियों का महत्व है। ऋषि-मुनियों की तपःपूत वाणी का प्रभाव अब भी यहां के वासियों के मन-मस्तिष्क में विद्यमान है । प्रकारान्तर से ऐसा कहा जा सकता है कि अध्यात्म एवं या धर्म यहां के आधारभूत तत्व हैं । मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब तक शिक्षा प्रणाली में अध्यात्म एवं नैतिक शिक्षा को समाविष्ट नहीं किया जाएगा, तब तक मूलभूत समस्याओं का हल नहीं होगा । आध्यात्मिक शिक्षा और नैतिक शिक्षा का मतलब यह नहीं कि बालकों से भगवान के नाम की रट लगवाई जाए । उसका तात्पर्य तो इतना ही है कि बालको को प्रारम्भ से ही ऐसा शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त हो, जिससे कि वे सत्संस्कारी बनें । उनका जीवन विनय, सदाचार, अनुशासन, सत्यनिष्ठा, संयम व स्वावलंबन से अनुप्राणित बने । ये तत्व उनके जीवन के साथ इस अध्यात्म और नैतिक शिक्षा की उपादेयता
११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org