________________
स्थान पर अविद्या तथा आस्तिकता के स्थान पर नास्तिकता पनप रही है, व्यापक फैलाव पा रही है । जिज्ञासा की जा सकती है कि इसका कारण क्या है ? इसका मुख्य कारण है- शिक्षा प्रणाली का दोषपूर्ण होना । आज की शिक्षा विद्यार्थियों को विनय, नम्रता, अनुशासन, सत्य, नीति-निष्ठा, प्रामाणिकता जैसी बातों का पाठ नहीं पढ़ाती । इसीका यह दुष्परिणाम है कि विद्यार्थी आगे चलकर उच्छृंखल और उद्दंड बन जाते हैं। झूठ, फरेब, चोरी जैसी दुष्प्रवृत्तियों में फंसकर अपने जीवन को बर्बाद करते हैं । इसलिए इस बिन्दु पर गंभीरता से चिंतन करने की बात मैंने कही, जिससे कि शिक्षा - प्रणाली को दोषमुक्त बनाया जा सके ।
अपेक्षित है श्रद्धा और तर्क का संतुलन
अध्यापकों एवं विद्यार्थियों से एक बात विशेष रूप से कहना चाहता हूं | वे अपने जीवन में श्रद्धा को प्रश्रय दें । श्रद्धा में अद्भुत शक्ति होती है । पर इस शक्ति का अनुभव वे तभी कर पाएंगे, जब वे स्वयं श्रद्धाशील बनेंगे । अलबत्ता मैं तर्क का एकान्ततः विरोधी नहीं हूं । तर्क भी ज्ञान प्राप्ति में बहुत सहयोगी और आवश्यक तत्व है । पर उसकी एक सीमा है । उसका अतिक्रमण घातक है, भटकानेवाला है । यही बात श्रद्धा के क्षेत्र में भी लागू होती है । इसलिए मैं अन्ध-श्रद्धा का भी विरोधी हूं। मैं आशा करता हूं, अध्यापक और विद्यार्थी दोनों ही इस बिन्दु पर अपना ध्यान केन्द्रित कर श्रद्धा एवं तर्क का संतुलन कायम करेंगे 1
राजलदेसर
८ जनवरी १९५८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only महके अब मानव-सन
aihenbrary.org