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________________ ३ अध्यापकों का जीवन बोलता चित्र हो विद्यार्थियों के जीवन-निर्माता आज राष्ट्र के समक्ष अनेक करणीय कार्य हैं । उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक करणीय कार्य है-राष्ट्र के भावी कर्णधारों का जीवननिर्माण, विद्यार्थियों को सुसंस्कारित बनाना । जब तक विद्यार्थियों का जीवन विनय, नम्रता, सदाचार आदि गुणों से संपन्न नहीं होगा, तब तक राष्ट्र विकास की राह पर अग्रसर हो सकेगा, इसमें मुझे संदेह है। प्रश्न होगा, विद्यार्थियों के जीवन-निर्माण की जिम्मेवारी किसकी है ? यों तो माता-पिता, घर-परिवार और पास-पड़ोस सभी की यह जिम्मेवारी है, पर सर्वाधिक जिम्मेवारी है अध्यापकों की। वे ही वस्तुत: उनके जीवन-निर्माता हैं। इस स्थिति में उनके लिए आवश्यक है कि उनका जीवन विद्यार्थियों के लिए एक बोलता चित्र हो। सैकड़ों पुस्तकें पढ़ लेने पर भी एक विद्यार्थी को उतना ज्ञान नहीं हो सकता, जितना कि उसे अध्यापकों के जीवन एवं जीवन-व्यवहार से हो सकता है । इसका कारण बहुत स्पष्ट है । विद्यार्थियों का मानस अनुकरणप्रधान होता है । वे जैसा आचरण और व्यवहार दूसरों को करते हुए देखते हैं, वैसा ही आचरण स्वयं भी करने लगते हैं । इसलिए मैं अध्यापकों से कहना चाहता हूं कि वे अपनी इस जिम्मेवारी के प्रति गम्भीर बनते हुए सबसे पहले अपना स्वयं का जीवन निर्मित करें। जिसका स्वयं का जीवन निर्मित नहीं है, वह दूसरों का निर्माण कैसे कर सकेगा। निर्मित ही दूसरों का निर्माण कर सकता है । अध्यापक इस व्याप्ति को हृदयंगम करें कि उनका अपना निर्माण ही विद्यार्थियों का निर्माण है और विद्यार्थियों का निर्माण ही समाज और राष्ट्र का निर्माण है। शिक्षाप्रणाली दोषमुक्त बने कई बार यह प्रश्न सामने आता है कि विद्या का सही उद्देश्य क्या है ? विद्या का सही उद्देश्य है.-- आत्म-ज्ञान की उपलब्धि । प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने उस विद्या को विद्या नहीं माना है, जो आत्म-संवेदन से परे है, आस्तिकता से परे है । परन्तु यह कितने गंभीर चितन की बात है कि आज विद्या के अध्यापकों का जीवन बोलता चित्र हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003136
Book TitleMaheke Ab Manav Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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