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• ऊंचा जीवन वह है, जो संयम से संवलित है । ( ३८ )
० जहां संयम नहीं, आत्म-नियन्त्रण नहीं, वहां मैं मृत्यु देखता हूं । (३८)
• सच्चा सुख तो संयम और आत्म-नियन्त्रण में है । इस सुख के समक्ष भौतिक सुख सर्वथा नगण्य है । ( ३९ )
• शराब पीना निश्चित ही बुरा है, पर उससे भी अधिक बुरा यह मानना है कि शराब पीना अच्छा है । (४०)
• धर्म जीवन की पवित्रता का एकमात्र साधन है, (४२)
• जब तक धर्म से अपने स्वार्थ को साधने की मनोवृत्ति नहीं मिटेगी, तब तक उसकी तेजस्विता प्रकट नहीं हो सकती । (४२)
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• धार्मिक बनने के लिए प्राथमिक अपेक्षा है—व्यक्ति अपने आचरण और व्यवहार को सम्यक् बनाए, पवित्र बनाए, शुद्ध बनाए । (४३)
अहिंसा धर्म का प्राणतत्त्व है । जीवन में जो महत्त्व प्राण का है, वही धर्म में अहिंसा का है । (४४)
• जिस क्षेत्र में जन-चेतना जागृत हो जाती है, उस क्षेत्र में करणीय कुछ भी असंभव नहीं रहता । (५१)
• धर्म सदा अमर है और अमर रहेगा । संसार की बड़ी से बड़ी कोई शक्ति भी उसको नहीं मिटा सकती, उसकी तेजस्विता को धूमिल नहीं कर सकती । (५५)
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• बड़प्पन की कसौटी ऊंचे कुल से पैदा होना नहीं है । सत्ताधारी और विपुल वैभवशाली होना भी नहीं है। सही माने में बड़प्पन तो सदाचरण, संयम और संतोष में है । (५६)
• वस्तुतः सच्चा सुख संयम में है, आत्म-नियंत्रण में है । (५६)
• संयम या आत्म-नियंत्रण से मिलनेवाले सुख की बात मैं क्या बताऊं ! वह तो अनिर्वचनीय है । केवल उसका अनुभव ही किया जा है । (५६, ५७ )
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• जिस व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति नहीं, उसका जीवन सार्थक जीवन कदापि नहीं हो सकता, भले वह बहुत बड़ा धनपति क्यों न हो, बड़े से बड़ा सत्ताधीश क्यों न हो । (५९)
• जब तक व्यक्ति मिथ्यादर्शन से मुक्त होकर सम्यक् दर्शन को प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक उसका ज्ञान भी अज्ञान है । फिर उससे सम्यक् आचरण की तो आशा भी कैसे की जा सकती है । ( ५९,६०) • जिस ज्ञान के पीछे आत्म-दर्शन का अभाव होता है, वह व्यक्ति के लिए वरदान नहीं बन सकता । (६०)
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महके अब मानव-मन
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