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निर्जरा
पूर्वसंचित कर्मों का टूटना ।
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कर्मों को तोड़ने के लिए किया जानेवाला तप ।
४. उष्णता
परीषह - साधु-चर्या को पालने के कारण उत्पन्न होने वाले कष्ट । वे बावीस प्रकार के होते हैं - १. क्षुधा २ पिपासा ३. शीत ५. मच्छर-दंश ६. अचेल ७. अरति-रति ८. स्त्री ९. चर्या १०. निषधिका ११. शय्या १२. आक्रोश १३. वध १४. याचना १५. अलाभ १६. रोग १७. तृण-स्पर्श १८. मैल. १९. सत्कार २०. प्रज्ञा २१. ज्ञान २२. दर्शन । - शुभ रूप में उदय आने वाले पुण्य - अशुभ रूप में उदय आने वाले श्रावक - हिंसा, असत्य आदि सावद्य करनेवाला सम्यग्दृष्टि जीव ।
पाप-
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कर्म - पुद्गल ।
कर्म - पुद्गल ।
पापकारी प्रवृत्ति का आंशिक त्याग
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महके अब मानव-मन
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