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पारिभाषिक शब्द-कोष
आगम-जैनधर्म के मूल शास्त्र आगम कहलाते हैं। इनमें तीर्थंकर महावीर
की वाणी के आधार पर गणधरों, ज्ञानी स्थविरों द्वारा गुम्फित सूत्रों -- ग्रन्थों को समाविष्ट किया गया है । गणधरों द्वारा बनाए गए आगम 'अंग' तथा विशिष्ट ज्ञानियों द्वारा बनाए गए आगम 'उपांग' आदि कहलाते हैं । देखें तीर्थंकर, गणधर । श्वेतांबर परम्परा में स्थानकवासी एवं तेरापंथ द्वारा ३२ आगम स्वीकृत हैं -११ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, ४ छेद, १ आवश्यक ।
___ अन्य श्वेतांबर परम्पराएं ४८ या ८४ आगम भी मानती हैं। गणधर ---तीर्थ-स्थापना के प्रारम्भ में होने वाले तीर्थंकर के विद्वान् शिष्य,
जो कि उनकी वाणी का संग्रहण कर उसे अंग-आगम के रूप में
गुम्फित करते हैं। तीर्थकर ...
० धर्मचक्र प्रवर्तक । . साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका---इन चार तीर्थों के
संस्थापक । • चार घनघाती कर्मों का क्षय कर जो केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि
गुणों को प्राप्त कर लेते हैं तथा आठ प्रातिहार्य आदि विशिष्ट उपलब्धियों के धारक होते हैं, वे ही अर्हत् , जिन या तीर्थंकर
कहलाते हैं। ० नमस्कार महामंत्र का प्रथम पद इनके लिए प्रयुक्त है । जीवन की
समाप्ति पर वे सिद्धावस्था को प्राप्त हो जाते हैं । ० प्रत्येक उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी में भरतक्षेत्र तथा ऐरावतक्षेत्र
में २४ तीर्थंकर उत्पन्न होते हैं । यह चौबीसी कहलाती है। ० भरतक्षेत्र में वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ व अन्तिम
तीर्थंकर महावीर थे। तीर्थंकर नाम कर्म --- नाम कर्म की ९३ प्रकृतियों में से एक प्रकृति । इस कर्म
प्रकृति के उदय से व्यक्ति तीर्थंकर बनता है । इस कर्म प्रकृति के बंधन के बीस कारण बताए गए हैं।
पारिभाषिक शब्द-कोष
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