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प्रेरक वचन
० धर्म में वह शक्ति है, जो हिंसाजन्य सभी समस्याओं का निरसन कर
सकती है, वातावरण को स्वस्थ बना सकती है । (१) ० मैं तो उस पवित्र धर्म का पुजारी हूं, जो अहिंसा की सुदढ़ भित्ति
पर खड़ा है, जो जन-जन के लिए सात्विक वृत्ति और सदाचारण की प्रेरणा बनता है, आत्म-विशुद्धि जिसकी चरम निष्पत्ति है । ऐसा धर्म ही संसार को समता, मैत्री और सद्भावना का संदेश दे सकता
है, मनुष्य के सुख और शान्ति का आधार बन सकता है । (१,२) ० यदि व्यक्ति का कर्तत्व प्रखर है, सकल्प पूष्ट है, आस्था दढ़ है, तो वह विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी सच्चाई के मार्ग पर टिका
रह सकता है। (४) ० कठिनाइयां स्थायी नहीं होतीं, शाश्वत नहीं होतीं। अन्तत: साहस
के आगे घुटने टेक देती हैं, दम तोड़ देती हैं । (४) ० सैकड़ों पूस्तकें पढ़ लेने पर भी एक विद्यार्थी को उतना ज्ञान नहीं हो
सकता, जितना कि उसे अध्यापकों के जीवन-व्यवहार से हो सकता
० श्रद्धा में अद्भुत शक्ति होती है। (६) ० तर्क भी ज्ञान-प्राप्ति में बहुत सहयोगी और आवश्यक तत्त्व है। पर
उसकी एक सीमा है। उसका अतिक्रमण घातक है, भटकानेवाला
है । (६) ० महापुरुष सार्वजनीन होते हैं । किसी वर्ग या जाति-विशेष की सीमा
में बंधकर वे नहीं रहते । (७) ० महापुरुषों के विचार और उपदेश इतने व्यापक होते हैं कि लाख
प्रयत्नों के बावजूद वे किसी भी प्रकार की संकीर्ण सीमा में बंधकर रहते नहीं, रह सकते नहीं । अपने इस वैशिष्ट्य के कारण ही वे जन-जन के आकर्षण एवं आस्था के केन्द्र बन जाते हैं। संपूर्ण मानव-जाति की धरोहर बन जाते हैं । (७)
प्रेरक वचन
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