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बन्दीगृह सुधारगृह बनें
परिवर्तन की दिशा
आज मैं बन्दीगृह में आया हूं। बन्दियों की स्थिति क्या है, किसी से छुपी नहीं है। उनसे बात करना तो बहुत दूर, लोग उनके बीच जाकर बैठना तक पाप समझते हैं। इससे भी आगे, बन्दीगृह से मुक्त हो जाने के पश्चात् भी उन्हें नौकरी एवं जीवन-यापन की आवश्यक सुविधाएं सहजतया उपलब्ध नहीं होतीं। पग-पग पर उन्हें अपमान की कड़वी बूंट भी पीनी पड़ती है । बन्दियों के मन में प्रश्न है, इस स्थिति में परिवर्तन कैसे आए ? मेरी दृष्टि में इस स्थिति में परिवर्तन का एक ही उपाय है और वह उपाय है कैदी बन्दीगृह को कारावास न मानकर सुधारगृह या शिक्षालय समझकर अपने जीवन को सुधारने का प्रयास करें। हीनता और अहंकार से बचें
बन्दी लोगों को अपनी सोच में परिष्कार करने की अपेक्षा है । इंसान से भूल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । जान-अनजान में जब-तब उससे भूल हो जाती है। वह भविष्य में भूल की पुनरावृत्ति न होने के प्रति जागरूक तो बने, पर अपने-आपको हीन, दीन और क्षीण क्यों समझे ? वस्तुतः कोई भी मनुष्य अपने आपमें हीन-दीन-क्षीण नहीं होता, क्योंकि उसके मुंह एक और हाथ दो हैं। हीनता-दीनता-क्षीणता उसकी बुराइयां और दुष्प्रवृत्तियां हैं। जब वह बुराइयों से उपरत हो जाता है, दुष्प्रवृत्तियों को छोड़ देता है, तो उसका परमात्मस्वरूप प्रकट होने लगता है। हम गहराई से ध्यान दें तो अपने शुद्ध आत्मस्वरूप में मनुष्य परमात्मा ही है । पर ऐसा मानकर वह गर्वोन्मत्त भी न बने । गर्वोन्मत्त बनना भी हीन-दीन-क्षीण मानने की तरह अहितकर है, खतरनाक है। इसलिए बन्दी भाइयों को इन दोनों ही बातों से सलक्ष्य बचना चाहिए । आत्मालोचन की गंगा में स्नान करें
बन्दी भाई अपना आत्मालोचन करें-यह उनके लिए तीसरी आवश्यक बात है । यह कैसी विचित्र बात है कि व्यक्ति दूसरों की भूल और प्रमाद को
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महके अब मानव-मन
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