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को उसके पानी की कोई सीमा करनी होगी और इसीलिए घड़े का उपयोग किया जाता है । घड़ा सीमाकरण का साधन है। ठीक यही बात व्रत की भी है । व्रत अपने आप में बहुत व्यापक तन्व है, परम कल्याण का तत्व है । पर उपयोग की दृष्टि से उसके दो विभाग किए जाते हैं। पहला महाव्रत और दूसरा अणुव्रत । महाव्रत में पूर्ण अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि की बात आती है, जबकि अणुव्रत में इन्हीं तत्वों का आंशिक रूप होता है। महाव्रत स्वीकार करने की क्षमता हर कोई में नहीं होती, कोई-कोई व्यक्ति ही उसे स्वीकार कर सकता है। पर अणुव्रत के लिए ऐसी बात नहीं है। उसके व्रत कोई भी व्यक्ति बहुत सहजतया स्वीकार कर सकता है। पर छोटे-छोटे होने के बावजूद उन व्रतों में अद्भुत शक्ति है। वे व्यक्ति की संयम-चेतना को झंकृत कर उसे असत्प्रवृत्तियों से बचाते हैं। आज आप यहां वीर कुंवरसिंह की जयन्ती मना रहे हैं । उस आत्मा ने देश के लिए अपने जीवन का बलिदान किया था। क्या आप भी उस वीर पुरुष का अनुकरण करेंगे ? पर आज आवश्यकता शहीद बनने की नहीं, अपितु देश के हित में बुराइयों को त्याग कर संयमी बनने की है। मैं आपको आह्वान करता हूं कि आप अणुव्रत आन्दोलन से जुड़ें। यह व्यक्ति-व्यक्ति को संयममय जीवन जीने की उत्प्रेरणा देने का महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम है। इससे आपका स्वयं का जीवन तो निर्मित होगा ही होगा, राष्ट्र के नवनिर्माण में भी आप योगभूत बन सकेंगे।
बक्सर (शाहबाद) ३० दिसम्बर १९५८
संयममय जीवन हो
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