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सबसे पहलो अपेक्षा
सन् १९४७ में भारतवर्ष आजाद हुआ। तब से उसके विकास की विभिन्न योजनाएं बनती रही हैं। आज भी बन रही हैं । पर यह बात दिन के उजाले की तरह बिलकुल स्पष्ट है कि उनका अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ रहा है। इसका क्या कारण है ? कारण बहुत स्पष्ट है । आज राष्ट्र में चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चोरबाजारी, कम तोल-माप, मिलावट, रिश्वतखोरी, असत्याचरण, विश्वासघात जैसी अनेक दुष्प्रवृत्तियां जन-मानस पर इस प्रकार हावी हो रही हैं कि मनुष्य को मनुष्य कहने में भी संकोच का अनुभव होता है। जब मनुष्य अपने मानवीय एवं नैतिक धरातल को भी सुरक्षित नहीं रख पाता है, तब कोई भी अच्छी-से-अच्छी योजना भी सफल कैसे हो सकेगी। आखिर किसी भी योजना की सफलता-असफलता उसी पर तो निर्भर करती है। इसलिए आज की सबसे पहली अपेक्षा यह है कि हम अन्य सभी बातों को गौण कर मनुष्य' को सही मनुष्य बनाने की योजना को कार्यरूप दें। उसके जीवन को सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता, चरित्रनिष्ठा, सदाचार जैसे तत्वों से भावित करने का अभियान चलाएं। अणुव्रत आंदोलन एक ऐसी ही योजना है, जो जन-जन को मानवीय धरातल प्रदान करती है । दूसरे शब्दों में अणुव्रत आंदोलन अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि पर आधारित छोटे-छोटे नियमों की एक ऐसी संकलना है, जो व्यक्ति को दुष्प्रवृत्तियों से दूर रखती हुई सदाचार के सांचे में ढालती है। उसके लिए पवित्र, नैतिक एवं प्रामाणिक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करती है। मैं मानता हूं, जब तक यह योजना जन-जन में व्यापक रूप में नहीं फैलेगी, लोग इसे अपने जीवन का अंग नहीं बनाएंगे, तब तक कितनी भी योजनाएं क्यों न बन जाएं, राष्ट्र का सही विकास नहीं हो सकेगा। आप लोग भी इस आंदोलन को समझे और इसकी आचार-संहिता को स्वीकार करें। निश्चय ही आप सच्चे मानव बनने का गौरव प्राप्त कर सकेंगे ।
फतुल्लापुर २७ दिसम्बर १९५८
सबसे पहली अपेक्षा
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